________________ तत्त्वसार भाषा करमउदय फल भोगते, कर न राग विरोध / .. ... सो नासै पूरव करम, आगै करै निरोघे // 51 // चौपाई ( 15 मात्रा) कर्मउदै सुख दुख संजोग, भोगत करें सुभासुभ लोग। तातें, बांधे करम अपार, ग्यानावरनादिक अनिवार // 12 // जबलौं परमानूसम राग, तबलौं करम सकैं नहिं त्याग। परमारथ ग्यायक मुनि सोय, राग तजै बिनु काज न होय // 53 // सुख दुख सहै करम वस साध, कर न राग विरोध उपाध। ग्यानध्यानमैं थिर तपवंत, सो मुनि कर कर्मको अन्त // 54 // गहै नहीं पर तजे न आप, करें निरन्तर आतमजाप / ताकै संवर निर्जर होय, आस्रव बंध विनासै सोय // 55 // तजि परभाव चित्त थिर कीन, आप-स्वभावविर्षे है लीन / सोई ग्यानवान दृगवान, सोई चारितवान प्रधान // 56 // आतमचारित दरसन ग्यान, सुद्धचेतना विमल सुजान / कथन भेद है वस्तु अमेद, सुखी अभेद भेदमैं खेद // 57 // जो मुनि थिर करि मनवचकाय, त्यागै राग दोष समुदाय / धरै ध्यान निज सुद्धसरूप, बिलसै परमानंद अनूप / / 58 // जिह जोगी मन थिर नहिं कीन, जाकी सकति करम आधीन / करइ कहा न फुरे बल तास, लहै न चेतन सुखकी रास // 59 / / जोग दियौ मुनि मनवचकाय, मन किंचित चलि बाहिर जाय। परमानंद परम सुखकंद, प्रगट न होय घटोमैं चंद // 6 // सब संकल्प विकल्प विहंड, प्रगटै आतमजोति अखण्ड / अविनासी सिवको अंकूर, सो लखि साध करमदल चूर // 61 // विषय कषाय भाव करि नास, सुद्धसुभाव देखि जिनपास। ताहि जानि परसौं तजि काज, तहां लीन हजै मुनिराज // 62 // विषय भोगसेती उचटाइ, शुद्धतत्वमैं चित्त लगाइ / होय निरास आस सब हरै, एक ध्यानअर्सिसौं मन मरै // 63 // 1. संवर / 2. बादलोंकी घटामें। 3. परसौं-परपदार्थोंसे। 4. ध्यानरूपी तलवारसे /