________________ 144 तत्त्वसार भाषा नीर खीरसौं न्यारौ होय, छांछिमाहिं डारै जो कोय / त्यौं ग्यानी अनुभौ अनुसरै, चेतन जड़सौं न्यारौ करै // 24 // दोहा चेतन जड़ न्यारी करै, सम्यकदृष्टी भूप / जड़ तजिक चेतन गहै, परमहंसचिद्रूप // 25 / / ज्ञानवान अमलान प्रभु, जो सिवखेतमँझार / सो आतम मम घट बसै, निहचै फेर न सार // 26 // सिद्ध सुद्ध नित एक मैं, ग्यान आदि गुणखान / अगन प्रदेस अमूरती, तन प्रमान तन आन // 27 // सिद्ध सुद्ध नित एक मैं, निरालम्ब भगवान् / . . करमरहित आनंदमय, अमें अजै जग जान // 28 // मनथिर होत विष घटै, आतमतत्त्व अनूप / ज्ञान ध्यान बल साधिके, प्रगटै ब्रह्मसरूप // 29 // अंबर घन फट प्रगट रवि, भूपर करै उदोत / विषय कषाय घटावतें, जिय प्रकास जग होत // 30 // मन वच काय विकार तजि, निरविकारता धार 1 प्रगट होय निज आतमा, परमातमपद सार // 31 // मौनगहित आसन सहित, चित्त चलाचल खोय। पूरव सत्तामैं गले, नये रुकै सिव होय // 32 // भव्य करें चिरकाल तप, लहैं न सिव विन ग्यान / ग्यानवान ततकाल ही, पावें. पद निरवान // 33 / / देह आदि परद्रव्यमैं, ममता करै गँवार। . भयौ परसमें लीन सो, बांधै कर्म अपार // 34 // . इंद्रीविषै मगन रहै, राग दोष घटमाहिं / क्रोध मान कलुषित कुधी, ग्यानी ऐसौ नाहिं // 35 // देखै सो चेतन नहीं, चेतन देखौ नाहिं / राग दोष किहिसौं करौं, हौं मैं समतामाहिं / / 36 / / 1. निर्भय / 2. अक्षय / 3. आकाशमें।।