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________________ ग्रन्थके टीकाकारकी प्रशस्ति . श्रीमन्माथुरगच्छ पुष्करगणे श्रीकाष्ठसंधे मुनिः सम्भूतो यतिसंघनायकमणिः श्रीक्षेमकोतिर्महान् / तत्पट्टाम्बरचनमा गुणगगी श्रीहेमकोतिर्गुरुः श्रीमत्संयमकोतिपूरितविशापूरो गरीयानभूत् // 6 // अभवदमलकोतिस्तत्पदाम्भोजभानु मुंमिगणनुतकोतिर्विश्वविख्यातकीर्तिः। शम-यम-दममूतिः सण्डिताराति कीर्ति• जबति कमलकोतिः प्रार्थितमानमूर्तिः // (इति ग्रन्थकर्तुः प्रशस्तिः) श्रीमान् माथुरगच्छ, और पुष्करगणमें श्री काष्ठासंघके भीतर यति-संघके नायकमणि श्री क्षेमकीर्ति नामके महामुनि हुए। उनके पट्टरूप गगनके चन्द्र, गुण-गणी श्री हेमकोति गुरु हुए जिन्होंने अपने गरिमावाले संयमकी कीतिसे सर्वदिशाओंको पूरित कर दिया था // 6 // ... उनके चरण-कमलोंको भानु-सदृश विकसित करने वाले, जिनकी निर्मल कीत्ति मुनिगणसे स्तुत एवं विश्वविख्यात है, ऐसे शिष्य कमलकोत्ति हुए, जो शम, यम और दमकी मूत्ति हैं, शुत्रुओंकी कीत्तिको खण्डित करनेवाले हैं और जगतमें जो ज्ञानमूर्तिरूपसे प्रार्थना किये (इति ग्रन्धकार प्रशस्ति) जाते हैं // 7 //
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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