________________ तत्त्वसार भाषा भाषा छन्दोबद्धकारका मंगलाचरण . दोहा आदिसुखी अन्तासुखी, शुद्ध सिद्ध भगवान् / निज प्रताप परताप बिन, जगदपेन जग आन // 1 // ध्यान दहन विधि-काठ दहि, अमल सुद्ध लहि भाव / परम जोतिपद बंदिकै, कहूँ तच्चको राव // 1 // . चौपाई .. तत्त्व कहे नाना परकार, आचारज इस लोकमँझार / भविक जीव प्रतिवोधन काज, धर्मप्रवर्तन श्रीजिनराज // 2 // आतमतत्त्व कयौ गणधार, स्वपरमेदते दोइ प्रकार / अपनी जीव स्वतत्व बखानि, पर अरहंत आदि जिय जानि // 3 // अरहंतादिक अच्छर जेह, अरथ सहित ध्यावै धरि नेह / ' विविध प्रकार पुन्य उपजाय, परंपराय होय सिवराय // 4 // आतमत स्वतने द्वै मेद, निरविकलप सविकलप निवेद। निरविकलप संवरको मूल, विकलप आस्रव यह जिय भूल // 5 // जहां न व्यापै विषय विकार, है मन अचल चपलता डार / / सो अविकल्प कहावै तत्त, सोई आपरूप है सत्त // 6 // मन थिर होत विकल्पसमूह, नास होत न रहै कछु रूह / / सुद्ध स्वभावविष है लीन, सो अविकल्प अचल परवीन // 7 // सुद्धभाव आतम दृग ग्यान, चारित सुद्ध चेतनावान / / इन्हें आदि एकारथ वाच, इनमैं मगन होइकै राच // 8 // परिग्रह त्याग होय निरग्रन्थ, भजि अविकल्प तत्त्व सिवपंथ / सार यही है और न कोय, जानै सुद्ध सुद्ध सो होय // 9 // अन्तर बाहिर परिग्रह जेह, मनवच तनसौं छोड़े नेह / सुद्धभाव धारक जब होय, यथा ग्यान मुनिपद है सोय // 10 //