________________ 138 तत्त्वसार अथानन्तरमेवाचार्यश्रीदेवसेनदेवास्तत्वसाराराधनाफलमाविष्कुर्वन्तीति। तद्यथामूलगाथा-सोऊण तच्चसारं रइयं मुणिणाह देवसेणेण / - 'जो सद्दिट्टी भावइ सो पावइ सासयं सोक्खं. // 74 / / संस्कृतच्छाया-श्रुत्वा तत्वसारं रचितं मुनिनाथ देवसेनेन / यः सद्-दृष्टिः भावयति स प्राप्नोति शाश्वतं सौख्यम् // 7 // टीका-सोऊण तच्चसारं रइयं मुणिणाहदेवसेणेण' इत्यादि व्याल्यानं क्रियते टीकाकारेण-'सोऊण' धृत्वा / कम् ? 'तच्चसार' तस्य भावरतत्त्वं जीवावि, तस्य सारो रहस्यस्तं तत्त्व आगें ग्रन्थकर्ता ग्रन्थकू समाप्त करता अपना नाम श्लेषालंकारकरि कहै हैं___भा० व०-मुनिनिका नाथ देवसेन नाम आचार्य ताकरि, अथवा मुनिनिका नाथ होय सो तो मुनीनाथ कहिए देवसेन, 'दिवु क्रीड़ायां' दिवु धातु है सो क्रीडा अर्थ विर्षे प्रवतें है, अपने स्वरूप विर्षे रम हैं, सो देव जाननां / सेनः- सा लक्ष्मी केवलज्ञानादि ताका इन कहिए स्वामी सेन। ऐसा जो देवसेन कहिए मुनिका नाथ देवसेन, ता करि रच्या जो तत्त्व जीवादिक सप्त तत्त्व तिनका सार रहस्य सो तत्त्वसार कहिए। सो तत्त्वसारकू सुनिकरि जो सम्यग्दृष्टि संशयादि-रहित समीचीन जो दृष्टिं सो है विद्यमान जाके सो सम्यग्दृष्टि कहिए, भावना कर है, अनुभव है, सो ही सम्यग्दृष्टि शाश्वत सुख जो अतीन्द्रिय मोक्षसुखकू प्राप्त होय है // 7 // ... दोहा तत्त्वसारकी वचनिका भई भव्य सुखकार। , वांचे पढ़े तिनिकै सही हो है जय जयकार // 1 // वंशाख कृष्णा सप्तमी गुरूवार शुभ जान। . उगणीस इकतीस मित संवत्सर शुभ मान / / 2 / / लिखी वचनिका मंदमति पन्नालाल सुजान। भविजन याकौं सोधियो क्षमा करहु बुधिवान // 3 // इति श्री देवसेनाचार्यकृत तत्त्वसार प्राकृतपाठ ताकी वनिका पन्नालाल चौधरी कृता समाप्ता। अब इसके पश्चात् आचार्य श्री देवसेनदेव तत्त्वसारकी आराधना का फल प्रकट करते हैं अन्वयार्थ-(जो सद्दिट्ठी) जो सम्यग्दृष्टि (मुणिणाहदेवसेणेण) मुनिनाथ देवसेनके द्वारा (रइयं) रचित (तच्चसारं) इस तत्त्वसारको (सोऊण) सुनकर (भावइ) उसकी भावना करेगा, (सो) वह (सासयं सोक्खं) शाश्वत सुखको (पावइ) पावेगा। - टीकार्थ-'सोऊण तच्चसारं रइयं मुणिणाह देवसेणेण' इत्यादि गाथाका टोकाकार व्याख्यान करते हैं-जीवादि तत्वका सार जो रहस्य है, उसे सुनकर जो उसकी भावना करता है