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________________ 136 तत्त्वसार पुणो सिद्धा' पुनस्तानेवं विषान् सर्वान् सिद्धान् नमामि नमस्करोमि, भावनमस्कारेण नमस्करोति सूत्रकर्ता। तथाऽहमपि वृत्तिकर्ता प्रणमामि सिद्धान् सिद्धस्वरूपास्तानिति भो संसारभीरो अमरसिंह ! त्वमपि नमस्कुरु मनसेति भावः // 72 // अथानन्तरं श्रीदेवसेनदेवोऽस्य तत्त्वसारस्य कर्ता फलप्राप्तिपूर्वकमाशीर्वादं ब्रवीति-.. मूलगाथा-जं अल्लीणा जीवा तरंति संसारसायरं विसमं / तं भव्वजीवसरणं णदउ सग-परगयं तच्च / / 73 / / संस्कृतच्छाया-यबालीना जीवास्तरन्ति संसारसागरं विषमम / तद्भव्यजीवशरणं नन्दतु स्वक-परगतं तत्त्वम् // 73 // आगें तत्त्वकौं आशीर्वाद देते कहैं हैं भा० व०-सो तत्त्व हैं सो 'नंदतु' निर्विघ्न जैसे होय तैसें चिरकाल स्थायी, चिरकाल तिष्ठने वाला होहु / कैसा है तत्त्व ? स्वगत परगत ऐसा पूर्व वर्णन कीया स्वरूप ! तत्त्वज्ञानलालश रूप श्री अमरसिंह कह्या--भो भगवन् मुने, सो तत्त्व कहा स्वरूप ? या प्रकार कहै हैं सो तत्त्व कह्या स्वगत तत्त्व है स्वस्वरूप स्वात्मरूप, अर परगतरूप पंचपरमेष्ठिस्वरूप, या प्रकार है। बहुरि कैसा है ? भव्यजीवनि के शरण ऐसा तत्त्व हैं। सो जा तत्त्वमें तल्लीन ऐसे जे भव्यजीव जे हैं ते संसार सो ही भया सागर समुद्र ताकू तिरै हैं। कैसा हैं संसार सागर ? विषम है // 73 // . प्रश्न-पुनः वे सिद्ध कैसे हैं ? उत्तर-'जम्मण-मरण-विमुक्का' अर्थात् जन्म-नबीन भवकी उत्पत्ति और मरण इन दोनोंसे विमुक्त-रहित हो जाते हैं / जन्म और मरणके मध्य होनेवाली जरा-वृद्धावस्थासे भी वे रहित हो जाते हैं। 'णमामि सव्वे पुणो सिद्धा' अर्थात् उक्त प्रकारके सर्वसिद्धोंको मैं पुनः नमस्कार करता हूँ। जिस प्रकार सूत्रकार श्री देवसेन भाव नमस्कारसे सिद्धोंको नमस्कार कर रहे हैं, उसी प्रकार में टीकाकार कमलकीति भी उन सर्वसिद्धोंको नमस्कार करता हूं। तथा हे संसारभीरु अमरसिंह ! तुम भी उन सिद्धोंको मनसे नमस्कार करो। यह इस गाथाका भावार्थ है / / 72 // अब इसके अनन्तर इस तत्त्वसारके कर्ता श्री देवसेनदेव फल-प्राप्ति-पूर्वक आशीर्वाद कहते हैं अन्वयार्थ-(जं अल्लीणा) जिसमें तल्लीन हुए ( जीवा ) जीव (विसमं ) विषभ ( संसार-सायरं ) संसार समुद्रको ( तरंति ) तिर जाते हैं ( त ) वह ( भव्वजीवसरणं ) भव्य जीवोंको शरणभूत ( सग-परगयं ) स्व और परगत (तच्चं ) तत्त्व ( णंदउ ) सदा वृद्धिको प्राप्त हो।
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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