________________ तत्वसार अथानन्तरं मुक्तजीवस्वरूपविशेषव्याख्यानं क्रियते श्रीदेवसेनदेवैरितिमूलगाथा-संते वि धम्मदव्वे अहो ण गच्छेइ तह य तिरियं वा। उड्ढगमणसहाओ मुक्को जीवो हवे जम्हा // 71 // संस्कृतच्छाया-सत्यपिधर्मद्रव्येऽषो न गच्छति तथैव तिर्यक् वा। ऊर्ध्वगमनस्वभावो मुक्तो जीवो भवेद् यस्मात् // 71 // टीका-'संते वि धम्मव्वे अहो ण गच्छेइ तह य तिरियं वा' इत्यादि व्याख्यानं करोति टीकाकारो मुनिः। तद्यथा-पर्मद्रव्ये गमनहेतो सति स सिद्धः सन् अधो न गच्छेत्, तथैव तिर्यग न गच्छन्नयातीति / कस्मात् ? 'चड्ढगमणसहावो मुक्को जीवो हवे जम्हा' यस्मात् कारणाद् ऊर्ध्वगतिस्वभावोऽयं जीवो यदा कर्मन्यो मुक्तो भवेत्तबोध्यमेव गच्छति / अथवा यतः प्रवेशान्मुक्तो भवेततोऽवस्तात्तिर्यग्वा न गच्छतीति भावार्थः // 71 // आगें ऊर्ध्वगमनका हेतु कहें हैं भा० व०-धर्मद्रव्य गमनका हेतु होत संत सो सिद्ध अधैं नाही गमन करै है, तैसें तिरछा हू गमन नाही करै है। याही कारणतं मुक्त जीव है सो ऊर्ध्वगमन स्वभाव होय है // 7 // अब इससे अनन्तर श्री देवसेनदेव मुक्तजीवके स्वरूपका विशेष व्याख्यान करते हैं अन्वयार्थ-( मुक्को जीवो ) कर्मोंसे मुक्त हुआ जीव ( धम्मदव्वे संते वि ) धर्म द्रव्यके होने पर भी ( अहो ण गच्छेइ ) नीचे नहीं जाता है, (तह य तिरियं वा) उसी प्रकार तिरछा भी नहीं जाता है। (जम्हा) क्योंकि मुक्त जीव ( उड्ढगमणसहाओ ) ऊर्ध्वगमन स्वभाव वाला (हवे ) है। टीकार्थ-'संते वि धम्मदव्वे अहो ण गच्छेइ तह य तिरियं वा' इत्यादि गाथाका टीकाकार मुनि व्याख्यान करते हैं। यथा-गमनका हेतु धर्म द्रव्यके होने पर भी सिद्ध जीव नं नीचे जाता है, उसी प्रकार न तिरछा जाता है। प्रश्न-किस कारणसे ? - उत्तर-'उड्ढगमणसहावो मुक्को जीवो हवे जम्हा' अर्थात् जिस कारणसे कि यह जीव ऊर्ध्वगमन स्वभाव वाला है / जब यह कर्मोसे मुक्त होता है, तब नियमसे ऊपर ही जाता है / अथवा आकाश-प्रदेशसे मुक्त होता है, उससे नीचे या तिरछे नहीं जाता है (किन्तु ऊपर लोकाग्र तक ही जाता है। ) यह इस गाथाका भावार्थ है // 71 //