________________ तस्पसार -- 121 टीका-'उप्पज्जइ को वि सासओ भावो' इत्यादि व्याक्रियते पतिता मुनिना-कोऽपि कश्चिदपि भावः। कथम्भूतः ? शाश्वतः। उत्पद्यते प्रकटीभवति / कदा ? 'सपलबियप्पे थक्के' सकलाश्च ते विकल्पा रागावयश्च सकलविकल्पास्तेषु / कथम्भूतेषु ? नष्टेषु सत्सु / बहुवचनं कथम् ? प्राकृते वचन-लिङ्गादिनियमो नास्तीति / कथम्भूतो यो भावः ? 'जो अप्पणो सहामो' यः किलात्मनः स्वभावः सहोत्पन्नः। पुनश्च किविशिष्टः ? 'मोक्खस्स य कारणं सो हुँ' स एव भावः स्फुटं कारणं भवतीत्यध्याहारः / कस्य ? मोक्षस्य चानन्तचतुष्टयस्वरूपस्येति मोक्षाभिलाषिणा भव्येनेति मत्वा सर्वे रागावयः परे भावा मोक्तव्या इति भावार्थः // 6 // आत्माका (सहावो) स्वभाव है / (सो) वह (खु) निश्चयसे (मोक्खस्स य) मोक्षका (कारणं) कारण है। टोकार्थ-'उप्पज्जइ को वि सासओ भावो' इत्यादि गाथाका टीकाकार मुनि व्याख्यान करते हैं-कोई विलक्षण भाव / कैसा ? शाश्वत / उत्पन्न होता है-प्रकट होता है / प्रश्न-कब प्रकट होता है ? उत्तर-'सयलवियप्पे थक्के' अर्थात् रागादि जितने भी विकल्प हैं, उन सबके नष्ट हो जाने पर वह शाश्वत भाव प्रकट होता है। ....प्रश्न-'सयलवियप्पे थक्के' यह तो सप्तमी विभक्तिका एकवचनरूप प्रयोग है। आपने उसका बहुवचनरूप अर्थ कैसे किया है ? उत्तर-प्राकृतमें वचन और लिंग आदिका कोई नियम नहीं है। इसलिए जहाँ जैसा अर्थ विवक्षित होता है, वैसा अर्थ कहा जाता है। प्रश्न-फिर वह शाश्वत भाव कैसा है ? उत्तर-'जो अप्पणो सहावो' अर्थात् वह आत्माका स्वभाव है। निश्चयसे जो आत्माका स्वभाव है वह उसके साथ ही उत्पन्न होता है / प्रश्न-पुनः वह स्वभाव कैसा है ? उत्तर-'मोक्खस्स य कारणं सो हु' अर्थात् वही भाव निश्चयसे कारण है। यहाँ ‘भवति' क्रियाका अध्याहार किया गया है / प्रश्न-वह भाव किसका कारण है ? उत्तर-अनन्तचतुष्टयस्वरूप मोक्षका कारण है। इसलिए मोक्षके अभिलाषी भव्यपुरुषको ऐसा जानकर सभी रागादि परभाव छोड़नेके योग्य हैं / यह इस गाथाका भावार्थ है // 61 / /