________________ 120 तत्त्वसार टीका-जा किंचिवि चलइ मणी माणे' इत्यावि, पवखण्डनारूपेण व्याल्यानं क्रियतेयावत्कालं किंचिन्मात्रं मनश्चित्तं चलति / कस्मिन् ? ध्याने परमात्मध्याने / कस्य? 'जोइस्स' योगिनः / कथम्भूतस्य ? 'गहियजोयस्स' गृहीतो योगो ध्यानं येनासौ गृहीतयोगः, तस्येवंविषस्यापि योगिनः / किं न भवतीति ? 'ताम ण परमाणंदो उप्पज्जई' तावत्कालं परमश्चासावानन्दश्च परमानन्दः न उत्पद्यते संभवति / कथम्भूतः ? 'परमसुक्खयरो' परमसौल्यकरः, परमं परमार्थरूपं सौख्यं करोतीत्येवं शीलमित्यर्थः। तस्मात्कारणान्निश्चलचित्तेन भव्येन भाव्यमिति भावार्थः॥६॥ अथ रागादि विकल्पाभावफलं वर्शयन्ति सूत्रकर्तारःमूलगाथा-सयलवियप्पे थक्के उप्पज्जइ को वि सासओ भावो / जो अप्पणो सहावो मोक्खस्स य कारणं सो हु // 61 // संस्कृतच्छाया-सकलविकल्पे रुद्ध उत्पद्यते कोऽपि शाश्वतो भावः। य आत्मनः स्वभावो मोलस्य च कारणं स खलु // 61 // आगें कहें हैं-सकल विकल्प नष्ट होत संत कोई मोक्षका कारण शाश्वता भाव प्रगट होय है भा० व०-सकल रागादिक विकल्प नष्ट होत सतें कोइक शाश्वता भाव उपजे है जो आत्माका स्वभाव है। बहुरि सो स्वभाव मोक्षका कारण होय है / / 61 // टोकार्थ-'जा किंचिवि चलइ मणो झाणे' इत्यादि गाथाके अर्थका व्याख्यान करते हैंजितने काल तक रंचमात्र भी चित्त चलायमान रहता है। प्रश्न-किसमें चलायमान रहता है ? उत्तर-परम शुद्ध आत्मध्यानमें / प्रश्न-किसका? उत्तर-योगीका। प्रश्न-कैसे योगीका ? .... उत्तर-'गहियजोयस्स' अर्थात् जिसने योग-ध्यानको ग्रहण किया है, इस प्रकारके योगीका। प्रश्न-उसके क्या नहीं होता? उत्तर-'ताम ण परमाणंदो उप्पज्जइ' उतने काल तक परम उत्कृष्टरूप जो आनन्द है, वह उत्पन्न नहीं होता है। प्रश्न-वह परमानन्द कैसा है ? ___ उत्तर-'परमसुक्खयरो' अर्थात् परम सुखका करनेवाला है। परम परमार्थरूप सुखको करनेका स्वभाववाला है। इस कारण भव्य जीवोंको ध्यान-अवस्थामें अत्यन्त निश्चलचित्त होना चाहिए यह इस गाथाका भावार्थ है // 60 // अब सूत्रकार रागादि विकल्पोंके अभावका फल दिखलाते हैं अन्वयार्थ-(सयलवियप्पे) समस्त विकल्पोंके (थक्के) रुक जानेपर (कोवि) कोई अद्वितीय (सासओ) शाश्वत-नित्य (भावो) भाव (उप्पज्जइ) उत्पन्न होता है (जो) जो (अप्पणो)