________________ तत्वसार 119 भवति तथेशी एवं विचारशक्तिर्नास्ति सामर्थ्य न भवति / यस्मात कि नास्तीत्याशङ्कायां सत्यां प्रोच्यते 'फुरइ ण परमाणंदो सच्चेयणसंभवो सुहदो' परमानन्दः परमसुखस्वरूपो न स्फुरति जागति / किविशिष्टः परमानन्दः ? सती शाश्वती समीचीना चासौ चेतना च सच्चेतना, तस्याः सकाशात् संभवः उत्पत्तिर्यस्य स सच्चेतनासंभवः / पुनरपि कथम्भूतः ? सुखदः परमातीन्द्रियसुखप्रद इत्यर्थः / अतएव परमानन्दसुखलालस भोः श्रीअमरसिंह ! शुभवता भवता ताग्विधेन योगाभ्यासेन भवितव्यमिति भावार्थः // 59 // अथ तस्यैव योगस्य सहायाभावं दर्शयन्ति सूत्रकृतःमूलगाथा-जा किंचि वि. चलइ मणो झाणे जोइस्स गहियजोयस्स / ताम ण परमाणंदो उप्पज्जइ परमसुक्खयरो // 6 // संस्कृतच्छाया-यावत् किञ्चिदपि चलति मनोध्याने योगिनो गृहीतयोगस्य / तावन्न परमानन्दो उत्पद्यते परमसौख्यकरः // 60 // आगें कहैं हैं-ग्रहण किया है जोग जानें, अर मन चलायमान होय है सो परमानन्द प्रगट नांही होय है . भा०व०-जोगीकै मन जो चित्त ध्यान जो परमात्मध्यान विर्षे जितने काल किंचित्कालमात्र चलायमान होय है / कैसा योगी के ? ग्रहण किया है योग ध्यान जानें, ऐसा योगी के जितने काल परमानन्द नांही उत्पन्न होय है। कैसा परमानंद ? परम परमार्थ रूप सुखकू करणेका है स्वभाव जाका, ऐसा नांही प्रगट होय है // 60 // निश्चयसे जैसी चाहिए, वैसी विचार-शक्ति या सामर्थ्य नहीं है कि जिससे क्या क्या न हो सके ? ऐसी आशंका होने पर सूत्रकार कहते हैं कि 'फुरइ ण परमाणंदो सच्चेयणसंभवो सुहदो' अर्थात् जिससे परम सुखस्वरूप परमानन्द स्फुरित न हो-जाग्रत न हो। प्रश्न-कैसा परमानन्द जाग्रत न हो ? उत्तर-सच्चेतन-संभव / शाश्वतकाल रहने वाली समीचीन चेतनासे जिसकी उत्पत्ति हो, ऐसा सच्चेतनसंभव परमानन्द जाग्रत न हो। प्रश्न-फिर भी वह परमानन्द कैसा है ? उत्तर-सुखद है, अर्थात् परम अतीन्द्रिय सुखका देने वाला है / ___अतएव परमानन्द सुखके अभिलाषी हे श्री अमरसिंह ! आप जैसे भाग्यशालीको उस प्रकारके परमानन्द देने वाले योगका अभ्यास करना चाहिए। यह इस गाथाका भावार्थ है // 59 // . .. अब सूत्रकार उसी योगकी सहायक सामग्रीकी अभावको दिखलाते हैं अन्वयार्थ-(जा) जब तक (गहियजोयस्स) योगके धारक (जोइस्स) योगीका (मणो) मन (झाणे) ध्यानमें (किंचिवि) कुछ भी (चलइ) चलायमान रहता है (ताम) तब तक (परमसोक्खयरो) परम सुख-कारक (परमाणंदो) परमानन्द (ण उप्पज्जइ) नहीं उत्पन्न होता है।