________________ तत्त्वसार 109 बत्रावसरेऽत्यासन्नभव्योऽमरसिंहः पृच्छति-भो भट्टारक श्रीपंकनकीर्ते ! तत्तपः किं विशिष्टमिति परिहारमाह-तथा च-बाह्याभ्यन्तरभेदेन तद् द्विविधम् / तत्र बाह्यं पविधम् / कथम् ? अनशनावमोदर्यवृत्तिपरिसंख्यानरसपरित्यागविविक्तशय्यासनकायक्लेशाल्यं षड्विधं बाह्यं तपः / तत्रान्नपानखाद्यस्वाधभेदेन चतुविधाहाराभावाख्यमनशनं तपः। न अशनं अनशनमुपवासः, चतुर्थ-षष्ठाष्टम-वशम-द्वादश-चतुर्वश-पक्ष-मास-द्विमास-त्रिमास-चतुर्मास-पंचमास-षण्मास-वर्षापवासपर्यन्तं यत्र क्रियते तदनशनं नाम बाह्यं तपः 1 / द्वितीयमवमोदर्याल्यं तपः। तथाहि-ग्रासकेन होनमशनं जघन्यम् / यत्र प्रासमेकमात्रं भुज्यते तदवमोदर्यमुत्कृष्टं बाह्यं तपः 2 / / एकगृहायधंग्रामपर्यन्तं भिक्षानिमित्त यत् भ्रम्यते लाभेऽलाभे च तद् वृत्तिपरिसंख्यानं तृतीयं बाह्यं तपः 3 / एकरसाविषड्रसपर्यन्तं परित्यज्यते यत्र तद् रसपरित्यागाख्यं चतुर्थ तपः 4 / ... इस अवसरमें अति निकट भव्य अमरसिंह पूछते हैं-हे भट्टारक श्रीकमलकीत्ति ! वह तप किस प्रकारका है ? टीकाकार उसका उत्तर देते हुए कहते हैं-वह तप बाह्य और अभ्यन्तरके भेदसे दो प्रकारका है / उनमें बाह्य तप छह प्रकारका है। . . प्रश्न-वे छह भेद कौनसे हैं ? उत्तर-अनशन, अवमोदर्य, वृत्तिपरिसंख्यान, रसपरित्याग, विविक्तशय्यासन और कायक्लेश ये छह बाह्य तपके भेद हैं। उनमें अन्न, पान, खाद्य, स्वाद्यके भेदसे चार प्रकारके आहारका त्याग करना अनशन तप है / अशन नाम भोजनका है, अशन नहीं करनेको अनशन अर्थात् उपवास कहते हैं / वह उपवास चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, दशम, द्वादश, चतुर्दश, पक्ष, मास, द्विमास, चतुर्मास, षण्मास और वर्षपर्यन्त जिस तपमें किया जावे, वह अनशन नामका पहिला बाह्य तप है 1 / " - दूसरा अवमोदर्य नामका बाह्य तप है। (मनुष्यका भोजन 32 ग्रासप्रमाण और स्त्रीका भोजन 28 ग्रासप्रमाण कहा गया है। ) उक्त प्रमाणभोजनमेंसे एक ग्राससे हीन भोजन करना जघन्य अवमोदर्य तप है। तथा जब एक ग्रासमात्र भोजन किया जाता है, वह उत्कृष्ट अवमोदर्य बाह्य तप है। (दो, चार, आठ आदि ग्राससे हीन भोजन करना मध्यम अवमोदर्य तप जानना चाहिए।) 2 / एक घरको आदि लेकर आधे गांवतक भिक्षाके निमित्त परिभ्रमण करना, आहारका लाभ होनेपर उसे ग्रहण करना और लाभ नहीं होनेपर वापिस लौट आना, यह वृत्तिपरिसंख्यान नामका तीसरा बाह्य तप है 3 / दूध, दही, घी, मीठा, तेल और नमक इन छह रसोंमेंसे एकको आदि लेकर छह रस तक का त्याग जिसमें किया जावे, वह रसपरित्याग नामका चौथा तप है 4 /