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________________ 108 तत्वसार न प्राप्नोति यतो रागबमोहरहितपुरुषविषयत्वात् / इति मत्वा नीरागात्मतत्वसम्यवद्धानज्ञानानुभूतिबलेन स रागो हेयो भवत्यासन्नभव्यजीवानाम्, नाभव्यानामिति तात्पर्यार्थः // 53 // अब मानिनः समसुखदुःखस्य कर्मणां निर्जराया हेतुस्तप इति प्रतिपादयतिमूलगाथा-सुहदुक्खं पि सहतो णाणी झाणम्मि होइ दिढचित्तो। ' हेऊ कम्मस्स तओ णिज्जरणटुं इमो भणिओ // 54 // संस्कृतच्छाया-सुखदुःखमपि सहमानो ज्ञानी ध्याने भवति दृढचित्तः। हेतुः कर्मणस्तपो निर्जरार्थमिदं भणितम् // 54 // टीका-'सुहबुलं' इत्यादि, तबथा-पूर्वोपाजितशुभाशुभकर्मणां फलं सुखदुःखमपि समताभावनाबलेनानुभूयमानः सन् स एव स्वसंवेदनज्ञानी धर्मध्याने शुक्लध्याने च दृढचित्तो भवति यदा, तवा किं भवतीति पृष्टे सत्युत्तरमाह-हेऊ कम्मस्स तो णिज्जरणट्रइमो भणिो ' पूर्वोताना ज्ञानावरणाविकर्मणां निर्जरणार्थमिदमेव तपो हेतुर्भणितं हेतुर्भूतं कारणं बीजमित्यमिषाने भणितमास्ते। आगें कहै है-ज्ञानी सुख-दुःखकू सहता हू तपविर्षे दृढ़ चित्त होय तब कर्मनिकी निर्जरा होय है: भा० व०-ज्ञानी सुख-दुःखनिकू सहता हू ध्यानविर्षे दृढ़चित्त होय है। इहां तप है सो कमंकी निर्जराके अर्थि कह्या है। पूर्व ज्ञानावरणादि कर्मनिकी निर्जरा हेतु तप है // 54 // परमार्थ-विज्ञायक कहते हैं। ऐसा परमार्थ-विज्ञायक भी रागी यदि योगी हो तो वह भी मोक्षको प्राप्त नहीं होता है, क्योंकि मोक्ष तो रागद्वेष मोहसे रहित पुरुषका विषय है। ___ ऐसा जानकर वीतराग आत्मतत्त्वके सम्यक् श्रद्धान, ज्ञान और अनुभूतिके बलसे वह राग निकट भव्य जीवोंको हेय है-त्यागनेके योग्य है; अभव्य जीवोंके नहीं। यह इस गाथाका भावार्थ है / / 53 // ____ अब सुख-दुःखमें समान रहनेवाले ज्ञानी पुरुषका तप कर्मोंकी निर्जराका कारण होता है, यह प्रतिपादन करते हैं ____ अन्वयार्थ-(सुह-दुक्खं पि) सुख-दुःखको भी (सहंतो) सहता हुआ (णाणी) ज्ञानी पुरुष जब (झाणम्मि) ध्यानमें (दिढचित्तो) दृढ़ चित्त (होइ) होता है, तब उसका (तपो) तप (कम्मस्स) कर्मकी (णिज्जरण8) निर्जराके लिए (हेऊ) हेतु होता है (इमो) ऐसा (भणिओ) कहा गया है। टोका'सुह-दुक्खं पि सहतो' इत्यादि गाथाका व्याख्यान करते हैं-पूर्वोपार्जित शुभअशुभ कर्मोके फल सुख-दुःखको भी समता-भावनाके बलसे अनुभव करता हुआ वही स्वसंवेदनज्ञानी जब धर्मध्यान और शुक्लध्यानमें दृढ़चित्त होता है, तब क्या होता है ? ऐसा पूछने पर सूत्रकार आचार्य उत्तर देते हैं ___ 'हेऊ कम्मस्स तओ णिज्जरणठें इमो भणिओ' अर्थात् पूर्वोक्त ज्ञानावरणादि कर्मोंकी निर्जराके लिए यही तप हेतुभूत कारण या बीज कहा गया है। शब्दकोशमें हेतु, कारण और बीज ये एकार्य-वाचक कहे गये हैं।
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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