________________ तत्वसार टीका-'मुक्खो' इत्यादि / तथाहि-मुक्खो विणासरूवो चेयणपरिवज्जिमओ सया देहो' देहः शरीरं कथम्भतः ? मूर्यो जडस्वरूपः, स्व-पर-प्रकाशकातीन्द्रियनिर्विकारसकलविमलकेवलज्ञानाभावात् / पुनश्च किविशिष्टो देहः ? कर्म-कर्मफल-ज्ञानचेतनाभेदात् त्रिविधचेतनया परि समन्तात परिवर्जितश्चेतनापरिवर्जितः, सवा सर्वस्मिन् कालेऽतीतानागतवतमानकालापेक्षया सर्वदेवकजडतारूपः / तद्वक्त्रस्य (?) कीदृग लक्षणं भवति ? 'तस्स ममत्ति कुणंतो बहिरप्पा होइ सो जीवों' तस्यैव तस्मिन् वा पूर्वोक्ते देहे ममतां तन्मयतां कुर्वन् जीवः कथम्भूतो भवति ? स्वशुद्धात्मानुभूत्यभावोपार्जितज्ञानावरणाविकर्मोदयात् स एव जीवो बहिरात्मा निजात्मतत्त्वाद बहिर्विषये आत्मा चित्तं यस्य स एव बहिरात्मा भवति / आत्मशब्दोऽत्र दशार्थेषु प्रवर्तते / तथा चोक्तम् ___आत्मा चित्ते धृतो. यत्ने विषणायां कलेवरे। परमात्मनि जीवेऽर्के हुताशन-समोरयोः // 24 // इति ज्ञात्वा अन्तरात्म-परमात्मनोविपरीतो बहिरात्मा त्याज्यो भवति भव्यजनैरिति भावार्थः // 48 // (चेयणपरिवज्जिओ) चेतनासे रहित है, जो (तस्स) उसकी (ममत्ति) ममता (कुणंतो) करता है (सो) वह (बहिरप्पा) बहिरात्मा (होइ) है। टीकार्थ-'मुक्खो विणासरूवो' इत्यादि गाथाके अर्थका व्याख्यान करते हैं-यह देह-शरीर कैसा है ? मूर्ख है-जड़स्वरूप है, क्योंकि इसमें स्व-पर-प्रकाशक अतीन्द्रिय निर्विकार सकल विमलस्वरूपवाले केवलज्ञानका अभाव है। . प्रश्न-पुनः यह देह कैसा है ? उत्तर-कर्मचेतना, कर्मफलचेतना और ज्ञानचेतनाके भेदसे तीन प्रकारकी चेतनासे सर्वथा रहित है, अतः चेतनापरिवजित है। - और यह देह सदा अर्थात् सभी कालमें भूत, भविष्य और वर्तमान कालको अपेक्षा सर्वदा ही एकमात्र जड़तास्वरूप वाला है / प्रश्न-ऐसे देहसे ममता करनेवालेका क्या लक्षण है ? उत्तर-'तस्स ममत्ति कुणंतो बहिरप्पा होइ सो जीवो' अर्थात् उस पूर्वोक्त स्वरूपवाले देहका, या उस देहसे ममता-तन्मयता करनेवाला जीव कैसा होता है ? बहिरात्मा होता है। अर्थात् अपने शुद्ध आत्माकी अनुभूतिके अभावसे उपार्जित ज्ञानावरणादि कर्मोके उदयसे वही जीव बहिरात्मा होता है। निज आत्मतत्त्वसे बाहिरी विषयमें जिसका आत्मा अर्थात् चित्त संलग्न हो, वह बहिरात्मा कहलाता है। - यहां शब्दकोषमें 'आत्मा' यह शब्द दश अर्थों में प्रवृत्त होता है / जैसा कि कहा है चित्त (मन), धृति (धैर्य), यत्न, धिषणा (बुद्धि), कलेवर (शरीर), परमात्मा, जीव, अर्क (सूर्य), हुताशन (अग्नि) और समीर (वायु) इन दश अर्थों में 'आत्मा' शब्द प्रयुक्त होता है // 24 // ऐसा जानकर अन्तरात्मा और परमात्मासे विपरीत स्वभाववाला जो बहिरात्मा है, वह भव्यजनोंको त्यागनेके योग्य है / यह इस गाथाका भावार्थ है // 48 //