________________ तत्त्वसार श्वरो वा सर्वन इति पुरुषप्रामाण्या वचनप्रामाण्यं भवतीति ज्ञात्वाऽसन्नभव्येन मोक्षार्थिना रुचिपूर्वक स्वशुद्धात्मनि भावना कर्तव्येति भावार्थः // 45 // इति तत्त्वसारावतारेऽत्यासन्नभव्यजनानन्दकरे भट्टारकधीकमलकोत्तिदेवविरचिते कायस्थमाथुरान्वयशिरोमणिभूत-भव्यवरपुण्डरीकामरसिंहमानसारविन्वदिनकरे भेदाभेवरत्नत्रयात्मकमोक्षमार्गभावनाफलवर्णनं नाम चतुर्थ पर्व // 4 // ... ऐसा जानकर निकट भव्य मोक्षाभिलाषी पुरुषको रुचिपूर्वक अपनी शुद्ध आत्मामें भावना करनी चाहिए। यह इस गाथाका भावार्थ है // 45 // __ इस प्रकार अति निकट भव्यजनोंको आनन्दकारक, भट्टारक श्री कमलकीति-विरचित, कायस्थ-माथुरान्वय-शिरोमणिभूत, भव्यवरपुण्डरीक अमरसिंहके मानस-कमलको दिनकरके समान विकसित करनेवाले इस तत्त्वसारके विस्तारावतारमें भेदाभेद रत्नत्रयात्मक मोक्षमार्गकी भावनाका फल-वर्णन करनेवाला चौथा पर्व समाप्त हुआ // 4 //