________________ तत्वमर टीका-सण-गाण-चरितमित्यादि, दर्शन-मान-चरित्रं योगी तस्येह भणति यो ध्यायत्यास्मानं सचेतनं शुद्धभावस्थम् / तथाहि-योऽसौ पूर्वोक्तः स्वसंवेदनज्ञानी कर्ता स्वात्मानं वेत्ति जानाति / कथम् ? 'शुद्ध-बुद्धकचिच्चमत्कारमात्रात्मतस्वसम्यश्रद्धान-ज्ञानानुभवचारस्वभावेनानुभवति / कथम्भूतमात्मानम् ? निरखनं शुद्धोपयोगस्वरूपोत्पन्नया चेतनया सह वर्तते सचेतनस्तं सचेतनम् / पुनश्च कथम्भूतम् ? शुद्धभावस्थम्-शुद्धनिश्चयेन मिथ्यात्व-रागादिकोषरहितत्वाच्छुद्धः। 'भू सत्तायां' भवतीति भावः। शुद्धश्चासो भावश्च शुद्धभावः, तस्मिन् शुद्धभावे तिष्ठतीति शुद्धभावस्थस्तं शुद्धभावस्थम् / यः किलवंविषमात्मानं भावयत्याराषयति तस्यैव ज्ञानिनो निश्चितं वर्शन-शान-चारित्रं भवति, इह जगति वाऽस्मिन् कलिकाले। कोऽसौ भणति ? योगी परमयोगी (अप्पाणं) आत्माको (झायइ) ध्याता है (तस्स) उसको (इह) इस लोकमें (णिच्छय) निश्चय (दंसणणाण-चरित्त) दर्शन ज्ञान चारित्र (भणइ) कहते हैं। ___टीकार्थ–'दसणणाणचरित्तं' इत्यादि गाथाके अर्थका व्याख्यान करते हैं जो वह पूर्वोक्त स्वसंवेदनज्ञानी ध्यानकर्ता अपने आत्माको जानता है। . . प्रश्न-कैसा जानता है ? उत्तर-शुद्धबुद्धकचिच्चमत्कारमात्र आत्मतत्वके सम्यक श्रद्धान, ज्ञान और अनुभवरूप सुन्दर स्वभावसे आत्माका अनुभव करता है / अर्थात् अपनेको शुद्धरत्नत्रयात्मक जानता है / प्रश्न-पुनः कैसे आत्माको जानता है ? उत्तर-निरंजन और सचेतन आत्माको जानता है। कर्मरूप अंजनसे रहित आत्माको निरंजन कहते हैं और शुद्धोपयोगरूप स्वरूपसे उत्पन्न चेतनाके साथ जो रहता है, उसे सचेतन कहते हैं। प्रश्न-पुनः केसे आत्माको जानता है ? उत्तर-शुद्धभावस्थ आत्माको जानता है। शुद्ध निश्चयनयसे मिथ्यात्व और रागादि दोषोंसे रहित आत्माको शुद्ध कहते हैं। 'भू' धातु सत्ताके अर्थमें प्रयुक्त होती है / जो सत् रूप होता है, उसे भाव कहते हैं / शुद्धरूप भावको शुद्ध भाव कहते हैं। उस शुद्ध भावमें जो रहता है, उसे शुद्धभावस्थ कहते हैं। ___ जो कोई इस प्रकारके आत्माको भावना करता है, आराधना करता है, उसी ज्ञानीपुरुषके निश्चित दर्शन ज्ञान चारित्र होता है। प्रश्न-कहॉपर रहनेवालेको होता है ? उत्तर-इस जगत्में, अथवा इस कलिकालमें रहनेवालेको होता है। प्रश्न-ऐसा किसने कहा है ? उत्तर-योगी, परमयोगीश्वर या सर्वज्ञ देवने कहा है, क्योंकि पुरुषकी प्रमाणतासे वचनमें प्रमाणता होती है। ...