________________ तत्वसार रागो यस्माबसौ वीतरागः स एव भवति / पुनश्च कथम्भूतो भवति ? निर्मलरत्नत्रयो निर्गतानि कर्माण्येव मलानि यस्मात्तं निर्मलं निर्मलरत्नत्रयं यस्यासौ निर्मलरत्नत्रयो भवति / इति मत्वा स्वशुद्धात्मैवोपादेयबुखमा चिन्तनीयो भव्यजनैरिति तात्पर्यार्थः // 4 // अथ निश्चयरत्नत्रयसकललामणं वर्शयति- ... मूलगाथा-दंसण-णाण-चरित्तं जोई तस्सेह णिच्छयं भणइ / जो झायइ अप्पाणं सचेयणं सुद्धभावढं // 45 // संस्कृतच्छाया वर्शन-बान-चारित्रं योगी तस्येह निश्चयं भगति / यो ध्यायत्यात्मानं सचेतनं शुखभावस्थम् // 45 // भा० व०-या लोकबिर्षे जोगी है ताकें निश्चय दर्शन ज्ञानचारित्रकू ही कहै हैं जो साधू आत्माने जाने है। कैसा आत्मा? सचेतन निर्विकल्प निरंजन शुद्धोपयोगस्वरूपकरि उत्पन्न जो चेतना, ताकरि सहित वर्तं सो सचेतन कहिए, सो सचेतनकू ही। बहुरि केसा आत्मा ? शुद्ध स्वभावस्थ, शुद्धनिश्चयकरि मिथ्यात्व-रागादि दोष-रहितपनात शुद्ध / 'भू' सत्ता अर्थ विष वतॆ है 'होय' सो भाव कहिए शुद्ध जो भाव, ता शुद्ध भाव विर्षे तिष्ठता // 45 // प्रश्न-पुनः वह आराधक कैसा होता है? उत्तर-णिम्मलरयणत्तओ साहू' अर्थात् वह आराधक निर्मल रत्नत्रयात्मक साधु होता है। इसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है-संस्कृतमें 'राध' और 'साध' ये दो धातुएं सम्यक् सिद्धिके अर्थवाली हैं। जो आत्माको और पर अर्थात परमात्माको साधता है, वह साध है और परमाराधक योगी भी है। जो कोई आत्माका ध्यान करता है, स्मरण करता है, अर्थात् वह उसका अनुभव करता है / अपने आत्माके द्वारा अपने आत्माके अनुभव करनेको संवेदन कहते हैं / जो स्वयं चेते अर्थात् अपने आपको जाने, उसे चेतना कहते हैं। संवेदन और चेतनाका समास 'संवेदन-चेतने' होता है। ये दोनों आदिमें जिनके हों वे 'संवेदनचेतनादि' कहलाते हैं / ऐसे संवेदनचेतनादिगुणोंसें उपयुक्त आत्माको ध्याता कहते हैं। प्रश्न-ऐसा आत्म-स्वरूपका ध्याता पुरुष कैसा होता है ? उत्तर-'वीयराओ हवई' वीतराग होता है। वीत अर्थात् विनष्ट हो गया है मिथ्यात्व आदि राग जिसमेंसे वह वीतराग होता है। प्रश्न-पुनः वह कैसा होता है ? उत्तर-'निर्मलरत्नत्रय होता है / कर्मरूप मल जिसमेंसे निकल गया है, उसे निर्मल कहते है। निर्मल रत्नत्रय जिसका होता है वह निर्मलरत्नत्रय होता है। ऐसा जानकर भव्यजनोंको अपना शुद्ध आत्मा ही उपादेयबुद्धिसे चिन्तन करनेके योग्य है। यह इस गाथाका तात्पर्यार्थ है // 44 / / अब निश्चयरत्नत्रयका सम्पूर्ण स्वरूप दिखलाते हैंअन्वयार्थ (जो) जो (जोई) योगी (सचेयणं) सचेतन और (शुद्धभावटुं) शुद्ध भावमें स्थित