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________________ तत्त्वसार अथानन्तरं यः कश्चिद भव्यो निजात्मानं ध्यायति, स कयम्भूतो भवतीति मनसि सम्प्रपार्य सूत्रमिदं प्रतिपादयतिमूलगाथा-जो अप्पाणं झायदि संवेयणचेयणाइ उवजुत्तो / सो हवइ वीयराओ णिम्मलरयणत्तओ साहू // 44 // संस्कृतच्छाया-य आत्मानं ध्यायति संवेदनचेतनाखुपयुक्तः। ___स. भवति वीतरागो निर्मलरत्नत्रयः साधुः // 44 // टीका-'जो अप्पाणं' इत्यादि, पवखण्डनारूपेण व्याल्यानं क्रियते-'जो अप्पाणं झायवि' यः कश्चिद् भव्यजीवः कर्ता कर्मतापन्नं निजात्मानं ध्यायति, 'स्मृ-ध्ये चिन्तायां ध्यै धातोः प्रयोगः, इत्यात्मानं स्मरतीत्यर्थः / कथम्भूतः सन् ? 'संवेयणचेयणाइ उवजुत्तों स्वसंवेदनचेतनाविभावोपयुक्तः। अयं ध्याता कथम्भूतो भवति ? 'सोहवह वीयरायो' स एवात्माजराषको वीतरागो भवति / पुनः किविशिष्ट: ? 'णिम्मलरयणत्तमो साहू' निर्मलरत्नत्रयात्मकः साधुः। तथाहि-'राषसाध संसिद्धौं' सापयत्यात्मानं परं परमात्मानं च साधुः, परमाराधको योगी यः किलात्मानं ध्यायति स्मरत्यनुभवतीत्यर्थः / स्वात्मना स्वात्मानं संवेद्यते संवेदनं स्वयं चेत्यते चेतना, संवेदनं च चेतना च संवेदनचेतने, ते द्वे आदी येषां ते संवेदनचेतनावयः, संवेदनचेतनादिभिर्गुणरुपयुक्तः संवेदनचेतनाघुपयुक्तः सन् / स्वरूपं ध्यायन् सन् कथम्भूतो भवति ? वोतो विनष्टो मिथ्यात्वावि फेरि कहै हैं भा० व०–जो साधू आत्माकू ध्यावं है / कैसा भया संता? स्वसंवेदन चेतनादिक भावकरि युक्त भया संता। ध्याता साधू सो ही वीतराग हो है। कैसा होय है ? निर्मल रत्नत्रयमय असा // 4 // अब इसके पश्चात् जो कोई भव्य अपनी आत्माका ध्यान करता है, वह कैसा होता है, यह शंका मनमें धारण करके आचार्य यह वक्ष्यमाण गाथासूत्र प्रतिपादन करते हैं अन्वयार्थ (जो संवेयणचेयणाइ उवजुत्तो) जो स्वसंवेदनचेतनांदिसे उपयुक्त (साहू) साधु (अप्पाणं) आत्माको (झायदि) ध्याता है (सो) वह (णिम्मलरयणत्तओ) निर्मल रत्नत्रयका धारक (वीयराओ) वीतराग (हवइ) हो जाता है। . - टीकार्य-'जो अप्पाणं झायदि' इत्यादि गाथाके अर्थका व्याख्यान करते हैं जो कोई ध्यान करनेवाला कर्ता योगी कर्गपनेको प्राप्त निज आत्माका ध्यान करता है / 'स्मृ' और 'ध्ये' ये दो धातुएं चिन्तनार्थक हैं। 'घ्यायति' यह 'ध्ये' धातुका प्रयोग है, तदनुसार उसका अर्थ होता है कि जो आत्माका स्मरण करता है। प्रश्न-कैसा होकर स्मरण करता है ? उत्तर-'संवेयणचेयणाइ-उवजुत्तो' अर्थात् स्वसंवेदन-चेतनादिभावोंसे उपयुक्त होकर स्मरण करता है। प्रश्न-वह ध्याता कैसा हो जाता है ? उत्तर-'सो हवइ वीयराओं' वह आराधक आत्मा वीतराग हो जाता है। .
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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