________________ 78 तत्वसार पक्वान्नाविफलवदालम्बाभावात्, आलम्बालम्ब्ययोरेकाश्रयत्वादिति फलरहितं स्वकीयशुभाशुभफलबानासामर्थ्य याति प्राप्नोति / किम् ? तदेव चिर-बद्ध कर्मजातम् / केषाम् ? योगिनाम् / कथम्भूतानां योगिनाम् ? 'युजि समाधी' इति योगशब्देन समाधिरुच्यते। योगो विद्यते येषां ते योगिनस्तेषां योगिनां सम्यग्ज्ञानिनामिति / तथा चोक्तम् साम्यं स्वास्थ्यं समाधिश्च योगश्चेतो-निरोधनम् / शुद्धोपयोग इत्येते भवन्त्येकार्थवाचकाः // 23 // इति योगमाहात्म्यं ज्ञात्वा सर्वसावधानेन भव्यनिरन्तरं योग एव ध्यातव्य इति भावार्थः // 32 // इति तत्त्वसार विस्तरावतारेऽत्यासन्नभव्यजनानन्दकरे भट्टारक-श्रीकमलकीतिदेवविरचिते कायस्थमाथुरान्वयशिरोमणिभूतभव्यवर-पुण्डरीकामरसिंहमानसारविन्ददिनकरे स्वगततत्त्व-परगततत्त्वमुख्यत्वेन ध्यानमाहात्म्यवर्णनं नाम तृतीयं पर्व // 3 // प्रश्न-कैसे योगियोंके.? उत्तर-'युज्' यह संस्कृत धातु समाधिके अर्थमें प्रयुक्त होती है। इसलिए यहां योग शब्दसे समाधिका अर्थ अभीष्ट है / यह योगरूप समाधि जिनके पाई ज तो है, वे योगी कहलाते हैं। ऐसे सम्यग्ज्ञानी योगियोंके चिरकालसे बंधे हुए कर्मसमूह स्वयं ही गल जाते हैं / कहा भी है साम्य, स्वास्थ्य, समाधि, योग, चित्त-निरोध, और शुद्धोपयोग–ये सब एकार्थ-वाचक नाम हैं // 32 // इस प्रकारका योग-माहात्म्य जानकर सर्वप्रकारकी सावधानीके साथ भव्यजनोंको निरन्तर योग ही ध्यान करनेके योग्य है, अर्थात् चित्तका निरोध करना चाहिए। यह इस गाथाका भावार्थ है // 32 // ___ इस प्रकार अति निकट भव्यजनोंको आनन्द करनेवाले, भट्टारक श्रीकमलकीत्तिदेव-विरचित, कायस्थ माथुरान्वयशिरोमणिभूत, भव्यवर-पुण्डरीक, अमरसिंहके मानस-कमलको दिनकरके समान विकसित करनेवाले इस तत्त्वसारके विस्तारावतारमें स्वगत-तत्त्व और परगततत्त्वकी मुख्यतासे ध्यानके माहात्म्यका वर्णन करनेवाला यह तीसरा पर्व समाप्त हुआ // 3 //