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________________ 70 तत्वसार निर्वतितत्वाद ज्ञानमयः, उपचरितसबभूतव्यवहारनयेन निवसति / क्व ? सिद्धौ, सिद्धालये यादृशः सिद्धः पूर्वोक्तः परमात्मा तिष्ठति, 'तारिसको देहत्थो' तादृश एव वेहस्थः, अनुपचरितासभूतव्यवहारेण देहे तिष्ठतीति देहस्थः / 'परमो बंभो मुणेयम्वो' परा उत्कृष्टा मा केवलज्ञानाविलक्ष्मी यत्रासौ परमः, पूर्वोक्त एव ब्रह्मा परमात्मा मन्तव्यो ज्ञातव्यः परमासन्नभव्यजीवैर्ज्ञानवैराग्यवद्भिर्योगिभिरुपादेयबुद्धया मनसा स्मरणीयो वचसा वक्तव्यः, कायेन तदनुकूलमाचरणीयमहर्निशमिति तात्पर्यार्थः // 26 // अथ शुद्धपारिणामिकभावनाहकेण शुद्धद्रव्यार्थिकनयेन तस्यैव परमब्रह्मणः स्वरूपं विवृणोतिमूलगाथा-णोकम्म-कम्मरहिओ, केवलणाणाइगुणसमिद्धो जो। सो हं सिद्धो सुद्धो णिच्चो एक्को णिरालंबो // 27 // संस्कृतच्छाया-नोकर्म-कर्मरहितः केवलज्ञानाविगुणसमृद्धो यः। - सोऽहं सिद्धः शुद्धो नित्यः एको निरालम्बः // 27 // भा० व०-सो सिद्धोऽहं कहिए सो सिद्ध मैं हूँ। सो कैसा हूँ ? सिद्ध हू, कृतकृत्य भए हैं समस्त कृत्य जाकै ऐसा सिद्ध / अर शुद्ध हूँ रागादिक विभाव कल्पना कलंकादिक रहितपणातें शुद्ध हूँ। अर नित्य हूँ कर्मोदयकरि उत्पन्न भए जन्म-मरणादिक रहित / अर एक हूँ सहज जो स्वभाव शुद्ध चिदानन्द एकरूपपणातें एक अद्वितीय स्वरूप हूँ। अर निरालंब हूँ कर्मोदयका अवलंबन रहितपणात निरालंब असहाय अन्य आलम्बन रहित हूँ। जो नोकर्म पांच प्रकार शरीर, कर्म ज्ञानावरणादिक आठ प्रकार द्रव्यकर्म, अर समस्त कर्मोत्पन्न भाव रहित हूँ। अर केवलज्ञानादिक अनन्त गुणनि करि भर्या सम्पूर्ण परमात्मा मुक्तिविर्षे तिष्ठं सो मैं हूँ। या प्रकार गुण विशेष परम ब्रह्मा सो ही मैं हूँ // 27 // . प्रश्न-कहां निवास करता है ? उत्तर-सिद्धि में अर्थात् सिद्धालयमें निवास करता है / जैसा पूर्वोक्त सिद्ध परमात्मा सिद्धालयमें निवास करता है, वैसा ही अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनयसे इस देहमें अवस्थित है / उसे ही 'परमो बंभो मुणेयव्यो' परम ब्रह्म मानना चाहिए। पर अर्थात् उत्कृष्ट, मा अर्थात् केवलज्ञानादिरूप लक्ष्मी जिसमें पाई.जावे, उसे 'परम' कहते हैं / भावार्थ-पूर्वोक्त उसी ब्रह्माको परमात्मा जानना चाहिए। वही परमब्रह्म परमात्मा ज्ञान और वैराग्य वाले अत्यन्त निकट भव्य जीवोंको उपादेय बुद्धिसे मनके द्वारा स्मरण करनेके योग्य है, वचनके द्वारा कथन करनेके योग्य है और कायके द्वारा तदनुकूल रात-दिन आचरण करनेके योग्य है / यह इस गाथाका तात्पर्यार्थ है // 26 // ___ अब सूत्रकार शुद्ध पारिणामिक भावको ग्रहण करनेवाले शुद्ध द्रव्यार्थिक नयसे उसी परमब्रह्मका स्वरूप विवरण करते हैं अन्वयार्य-(जो) जो सिद्ध जीव, (णोकम्म-कम्मरहिओ) शरीरादि नोकर्म, ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म तथा राग-द्वेषादि भावकमसे रहित है, (केवलणाणाइ-गुणसमिद्धो) केवलज्ञानादि अनन्त गुणोंसे समृद्ध है, (सो ह) वही मैं (सिद्धो) सिद्ध हूँ, (सुद्धो) शुद्ध हूँ, (णिच्चो) नित्य हूँ, (एक्को) एक स्वरूप हूँ और (णिरालंबो) निरालंब हूँ।
SR No.004346
Book TitleTattvasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Siddhantshastri
PublisherSatshrut Seva Sadhna Kendra
Publication Year1981
Total Pages198
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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