________________ महोपाध्यायश्रीयशोविजयगणिविरचिता [द्वितीयः सर्गः सस्पृह मन्त्रयत्येषा पुरतो भर्तुरुन्मदा / योनि जवनिकां त्यक्त्वा पात्रैर्निर्गम्यतामितः // 56 // गृह्यतां स्तन्यमम्बायाः संहृत्य रुदितक्रियाम् / लुठयतां च पुनधूल्यां शिक्यतां पदचक्रमः // 57 // . विण्मूत्रैर्भूयतां भूयो मलिनैर्बालचापले / पठ्यतां पटु कौमारे तारुण्ये भुज्यतां वधूः // 58 // वलीपलितबीभत्सर्वार्धके भूयतां पुनः / पुनः प्रविश्यतां योनौ पुनर्निर्गम्यतामितः // 59 // इत्येवं मन्त्रयित्वा साऽनन्तवारा विडम्बनाम् / करोति लोकपात्राणां सा हि स्वाभीष्टकारिणी // 60 // तयोः प्रयान्ति दम्पत्योर्वासराः स्नेहनिर्भराः / देवी प्रोवाच राजानमन्यदा रहसि स्थितम् // 61 // ईहे पुत्रसुखं स्वामिन् ! न न्यूनमपरं तु मे / स प्राह सिद्धमेवेदमावयोरेकचित्ततः // 62 // प्रोता भर्तुगिरा देवी स्वप्ने प्रेक्षत साऽन्यदा / मुखे प्रविष्टो जठरे निर्गतः सर्वसुन्दरः // 63 // केनाऽपि सुहृदा नीत इति हर्ष-विषादभाग् / सन्ध्येवाऽर्कतमोमिश्रा क्षामा तं प्राह भूभुजे // 6 // स प्राह ते सुतः श्रेष्ठो भावी स्थाता तु नो चिरम् / धर्माचार्यवचोबुद्धः स्वीया) साधयिष्यति // 65 // पुत्रोऽथ सुषुवे पुर्णशुभदोहदया तया / पित्राऽस्य भव्य इत्याख्या कृता स्वप्नानुसारतः // 66 // मात्रा सुमतिरित्यन्या कृताऽभिप्रेत्य दोहदम् / योगोऽयं दक्षिणावर्तशर्के दुग्धस्य पप्रये // 6 // भदे ! स पुण्डरीकोऽयं वर्ण्यते तनयोऽनयोः / देवी-देवाविमौ विश्वजनको तत्त्वतो यतः // 68 // अथाऽगृहीतसङ्केता जगौ सुललिता पुनः / अनयोस्तनयो जातः कथं निर्बीजवन्ध्ययोः ? // 69 // ततः प्रवर्तिनी प्रज्ञाविशाला प्राह तामिदं / मुग्धे ! तत्त्वानभिज्ञाऽसि परमार्थमतः शृणु // 70 // इमौ हि तत्त्वतोऽनन्ताऽपत्यावन्यनपत्यकौ / ख्यापितावविवेकादिदृग्दोषाशङ्किमन्त्रिभिः // 71 // इदानीं तत्कथं ताभ्यां पुत्रजन्म प्रकाशितम् ? / इति पृच्छापरां मुग्धां पुनराह प्रवर्तिनी // 72 // अस्यामेवाऽस्ति पुर्यां मे धर्माचार्यः सदागमः / रहस्यमनयोः सर्वं स जानाति महाशयः // 73 // स चान्यदा मया पृष्टो हृष्यन् हर्षस्य कारणम् / निबन्धप्रेरितः प्राह शगु भदे ! कुतूहलम् // 74 // विज्ञप्तो नृपतिः कालपरिणत्या रहःस्थया / क्षाल्यतामावयोर्वन्ध्याबीजत्वप्रभवं यशः // 75 // अलीकोऽप्यपवादो हि महिमानं क्षयं नयेत् / कलङ्कीति श्रुतश्चन्द्रस्तातेनाऽपि बहिष्कृतः // 76 // अपत्यान्यात्मनीनानि परेषां ख्यापितानि यैः / प्रष्टुमर्हन्ति तेऽत्रार्थे नाऽविवेकादिमन्त्रिणः // 77 // प्रतिश्रुतमिदं देव्या वचो राज्ञा यतो हितम् / समक्षं सर्वलोकानां पुत्रजन्म प्रकाशितम् // 78 // सोऽयं भव्यो ममाभीष्ट इति हृष्यामि धीमति ! / मयोक्तं युज्यते पूज्याः स्थाने हर्षोऽयमेष वः // 79 // अतः सुललिते! पात्रं पुण्डरीकोऽयमुत्तमम् / पुत्रः प्रकाशितो देवी-देवयोरनुकूलयोः / / 80 // गुणैरनन्यसामान्यदृष्टहेत्वतिवर्तिनी / सृष्टिर्निगद्यते पुण्यादृष्टस्य हि महात्मभिः // 81 // जगौ सुललिता पूज्ये ! शङ्का मे प्रथमा हता / त्वया समर्थयत्या मे गुरूक्तामर्थपद्धतिम् // 82 // एष वेत्ति कथं वार्ता भविष्यत्कालभाविनीम् ? / इत्येनमर्हसि च्छेत्तुं द्वितीयमपि संशयम् // 83 // अथ प्राह महाभद्रा भद्रे ! यो वीक्षितत्वया / सोऽयं सदागमो नाम पुरुषो धर्मदेशकः // 84 // 1. पूज्ये ! संशयः प्रथमो हतः / स्वया // .