________________ ठिक्तभत // 40 // . . प्रलो०.१-५५] वैराग्यरतिः / प्रतिश्रुतं च कष्टेन पितृभ्यामपि तद्वचः / स्वीकारितं च न ग्राह्या प्रव्रज्याऽस्मदपृच्छया // 27 // अथ साऽनु महाभद्रां विजहार तमोभिदम् / निशेव शशिनो ज्योत्स्नामेकनिर्बन्धबन्धुरा // 28 // कर्मोदयान्न बोधोऽस्या जायते च स्फुटः परम् / नन्दस्य घनशालायामन्यदा स्यात् प्रवर्तिनी // 29 // रम्ये शङ्खपुरेऽत्राऽथ श्रीगर्भ-नलिनीसुतः / सञ्जातः पुण्डरीकाख्यः प्रव्रज्यास्वप्नसूचितः // 30 // गुरुः समन्तभद्राख्यो जातनिर्मलकेवलेः / तज्जन्मावसरे तत्राऽऽयातश्चित्तरमे वने // 31 // तदा सुललिताऽज्ञाता महाभद्रा कथञ्चन / गता तं वन्दितुं प्रोक्तं तेन लास्यत्यसौ व्रतम् // 32 // इतः सुललिता प्राप्ता सूरिं तत्र स्म पश्यति / वर्णयन्तं गुणान् भाविभद्रभूपात्मजन्मनः // 33 // शुभेन कर्मणा कालपरिणत्याऽनुकूलया / अयं हि नॅगतौ जातः श्रेयःपात्रं भविष्यति // 34 // अयं हि भव्यपुरुषः सुमतिश्चेति सुन्दरम् / सर्वमत्रोचितं योगः क्षीरे खण्डस्य खल्वयम् // 35 // तदाऽऽकर्ण्य जनास्तुष्टा दथ्यौ सुललिता परम् / कोऽयं भेदो जनन्यादेः ? कथं भावि च वेत्त्यसौ ? // 36 // इति शङ्कापरा गत्वा वसलि सा प्रवर्तिनीम् / पप्रच्छ साऽतिमुग्धां तां ज्ञात्वाऽवादीत् सविस्तरम् // 37 // अस्तीह लोकविख्याता नृगतिनगरी शुभा / अन्याः सर्वा नगर्योऽस्यां मग्नाः सिन्धाविवापगाः // 38 // . अस्यां देवकुलाकारास्तुङ्गा मेर्वादयो नगाः / पर्वतः सर्वतःसालो विशालो मानुषोत्तरः // 39 // वर्षाचलपरिक्षेपाः पाटका भरतादयः / महाविदेहहट्टाध्वा विजयाऽऽपणपङ्क्तिभृत् // 40 // लवणोदधि-कालोदौ महाराजपथाविह / पाटकौघास्त्रयो जम्बू-धातकी-पुष्करार्द्धकैः // 41 // कोऽस्या वर्णयितुं शक्तो गुणसम्भारगौरवम् / महापुरुषरत्नानां भूरियं भूरितेजसाम् // 42 // एनां शास्ति नृपः कर्मपरिणामो महाबलः / नीतिमुल्लङ्घ्य यो विश्वं तृणायाऽपि न मन्यते // 43 // स च केलिप्रियो दुष्टो नर्तयत्यङ्गिनः सदा / तेऽपि तं नातिवर्तन्ते तत्प्रतापासहिष्णवः // 44 // स नारकादिरूपेण नृत्यतो वेदनातुरान् / क्रन्दतः प्राणिनो दृष्ट्वा प्राप्नोति विपुलां मुदम् // 45 // अनार्यकार्यसज्जं च लोकं दृष्ट्वा स माद्यति / नाटके दत्तधीश्चेष्टावेषादिविकृताशये // 46 // राग-द्वेषाख्यमुरज कुमावास्फालकोन्मदम् / सूत्रधारमहामोहं क्रोध-मानादिगायनम् // 47 // आनन्दिभोगविस्तारनान्दीमङ्गलपाठकम् / विहिताऽस्तोकबिब्बोककामनामविदूषकम् // 48 // वर्णकैश्चित्रलेश्याभिर्विलसत्पात्रमण्डनम् / योन्याख्यप्रविशत्पात्रनेपथ्यव्यवधायकम् // 49 // दीनताकिङ्किणीकाणैः कुसंज्ञाकंसिकास्वनैः / उत्तालैः शठतातालैः रङ्गरागैश्च मत्सरैः // 50 // दुष्टध्यानैरभिनयैर्धमिभिस्तत्त्वविप्लवैः / स्फुटैरर्धाक्षिविक्षेपैर्यथाभूतार्थनिह्नवैः // 51 // मण्डपैश्चित्तसङ्कोचैरुल्लोचैर्विविधाश्रवैः / लोकाकाशोदरे रङ्गस्थाने विहितविस्मयम् // 52 // पुद्गलस्कन्धसम्बन्धशेषोपस्करसञ्चयम् / कारयन्नाटकं लोकान् न बिभर्ति कृपामसौ // 53 // तस्यासीद् भूपतेः कालपरिणत्यभिधा प्रिया / स्वाहा स्वाहाभुजो यद्वन्नियत्याद्यतिशायनी // 54 // प्रष्टव्या विषमे कार्ये चित्तवृत्तिरिवाऽस्य सा / पार्वतीव महेशस्य वपुरर्धमधिष्ठिता // 55 // 1. °लः / इतः समागतोऽत्रैव स्थितश्चित्तरमे वने // 2. नृगतौ पुर्या जातः श्रेयांसि लप्स्यते // 3 //