________________ __ महोपाध्यायश्रीयशोविजयातिविरचिता [पः मार्ग खि H संस्तूयमानस्य निन्यमानस्य धीधनैः / गतानि कतिचिद वर्षाण्येवं राज्यभुजो मम // 1452 // इतश्च महसां धाम रिपुग्रामहुताशनः / चक्रवर्त्यनयच्चान्ततपनस्तपनोऽजनि // 1453 // स समग्रबलोपेतः पृथ्वीदर्शनकाम्यया ? / सिद्धार्थनाम्नि नगरे भ्रमंस्तत्र समाययौ // 1454 // अहं नयज्ञैर्विज्ञतस्ततो मन्त्रिमहत्तमैः / आयातस्तपनश्चक्री तदयं देव ! पूज्यताम् // 1455 // पूज्योऽयं सर्वभूपानां पूर्वजैस्तव पूजितः / तब पूजयितुं योग्यो गृहायातो विशिष्य च // 1456 // शैलराजहतेनाथ मया तान् प्रति भाषितम् / को नाम तपनो ? यस्य कुर्वे पूजामहं जड़ाः ! // 1455|| ते प्राहुर्देव ! मा वादीरिमां वाचमकुर्वता / पूजामस्य त्वया छिन्नः कुलक्रममहातरुः // 1458 // राजनीतिः परित्यक्ता नीताः प्रकृतयः क्षयम् / राज्यसौख्यलता दग्धा वयं सर्वेऽपकर्णिताः // 1459 // इत्युक्त्वा पतिताः सर्वे दक्षाश्चरणयोर्मम / मनाक् शुष्कं तदा शैलराजीयं मे विलेपनम् // 1460 // केवलं संज्ञितो भद्रे ! मृषावादेन पाप्मना / ततो मग्रोक्तं नेदानी ममोत्साहः प्रवर्त्तते // 1461 // प्रतिपत्तिं कुरुध्वं तद् गत्वा यूयं यथोचिताम् / पश्चादहं समेष्यामि दत्तास्थाने च राजनि // 1562 // ' ततो महत्तमाः सर्वे तपनाभिमुखं गताः / चराः सन्त्यस्य भूयांसो विचित्राः सर्वतोमुखाः // 1463 // वर्ण-स्वर-तिरोधान-वेष भाषादिवेदिनः / तेभ्यो ह्येकेन विज्ञातो वृत्तान्तोऽयमन स्फुटम् // 1464 // उक्तश्च सार्वभौमाय मन्त्रिणोऽथ महत्तमाः / समागतास्तस्य चक्रुः प्रतिपत्ति गरीयसीम् // 1165 // प्राभृतानि महा_णि ढोकयामासुरादरात् / रिपुदारणवार्ता च पृष्टाऽऽस्थानस्थचक्रिणा // 1466 // ते प्रोचुर्देवपादानां प्रसादात् कुशलीतराम् (?) / देवपादान समानन्तुमायाति रिपुदारणः // 1467|| तैरथाऽऽहायका मुक्ता ब्रूत नायामि सर्वथा / शैलराज-सृषाबादवशेनोक्तं मया तु तान् // 1468 // आहायकोक्तमाकर्ण्य तत्ते मन्त्रिमहत्तमाः / जाताः सोद्वेगवैलक्ष्याः परस्परमुखेक्षिणः // 1469 // विज्ञाय तपनश्चक्री तदाकुतमदोऽवदत् / धीरा भवत भो लोका ! नात्र दोषोऽस्ति कोऽपि वः // 1470 // मोच्यस्त्ववस्तुनिर्बन्धो नोचितोऽयं नृपश्रियः / शिक्षयामि स्वयं ह्येनं ज्ञातदुःशीलचेष्टितम् // 1471|| युष्मादृशपदातीनां नायकोऽयं न शोभते / मरालानामिव ध्वासो द्विपानामिव शूकरः // 1472 / / मयि सर्वैश्च्युतस्नेहैस्ततो मन्त्रिमहत्तमैः / प्रमाणं देवपादानामाज्ञा न इति भाषितम् // 1473 // चक्रभृन्मान्त्रिकं प्राह ततो योगेश्वराभिधम् / गत्वा विनाटनीयोऽयं बहुधा कृतकर्मभुक् // 1474 // योगेश्वरी मदभ्यर्णमायातोऽथ भटान्वितः / शैलराज-मृषावादधृष्टं मां स निरीक्षत // 1475 / / उत्प्रासनपरैः खिऑर्वेष्टितं मां मुखेऽथ सः / योगेश्वरो योगचूर्णमुष्टया निहलवान् भृशम् // 1476 / / तत्प्रभावात् क्षणेनाऽभूत् प्रकृतेमें विपर्ययः / महागह्वरगस्येव जाता हृदयशून्यता // 1477 // ताडितोऽहं ततस्तेन सञ्जातं मे भयं महत् / पसितस्तत्पदे दीनो नष्टः पुण्योदयस्तदा // 1478 // शैलराज-मृघाबादौ तिरोभूतौ ततः कृतः / सन्मनुष्यैर्यथा आतो मषीपुण्डूकचर्चितः // 1479 // कृततालारवैस्तैश्च रासमध्येऽवतारितः / प्रवृत्ता नाटयन्तो मां रासं दातुं त्रितालकम् // 1980 // 1. वेत्रलतमा सेनाहं भयविहलः /