________________ महोपाध्यायश्रीयशोविजयगणिविरचिता [चतुर्थः सर्गः इतश्च गुणरत्नौघपूर्णपुण्यापणावलि / पुरं विमलचित्ताख्यमस्ति स्वस्तिनिकेतनम् // 228 // जयत्यनन्तगुणभूर्नृपस्तत्र मलक्षयः / कषायतनुताकोशादक्षयो नत्पयोदयः (:) // 229 // तस्य चास्ति महादेवी शुभलब्धिरनित्वरी / गुणैर्जयन्ती जगतीं चतुरम्भोधिमेखलाम् // 230 // जाता ताभ्यां शुचिः कन्या बुद्धिवंशविवर्धनी / चान्द्री कलेव जगतीं नयनानन्ददायिनी // 231 // विचिन्त्य तद्विवाहाहं गुणपूर्ण विचक्षणम् / प्रहिता प्रीतिमद्भयां सा ताभ्यां तस्य स्वयंवरा // 232 // विचक्षणेन सा कन्या परिणीता महोत्सवैः / यान्त्यस्य दिवसा भोगान् भुञ्जानस्य तया सह // 233 // वार्तामथाऽन्यदा लब्धं बुद्धेः स्नेहमहोदधिः / विमाख्यं निजं पुत्रं प्रजिधाय मलक्षयः // 234 // भगिन्याः प्रेमबद्धोऽसौ तस्या एवाऽन्तिके स्थितः / सा पूर्णदोहदा पुत्र प्रकर्ष सुषुवेऽन्यदा // 235 // श्लाघ्यो विख्यातमहिमा जातोऽसौ बुद्धिनन्दनः / विमर्शस्य प्रियः कामं विचक्षणगुणैः समः // 236 // अथाऽन्यदा वनं स्वीयं दृष्ट्वा वदनकोटरम् / विचक्षण-जडौ तत्र स्थितौ लीलापरौ सुखम् // 23 // दृष्टं महाबिलं ताभ्यां तत्र तस्माच्च निर्यती / रक्तवर्णाऽङ्गना दृष्टा लीलाकृष्टजगन्मनाः // 238 // तामुद्वीक्ष्य जडश्चित्ते ममौ नाऽऽनन्दपूरतः / दध्यौ च नेदृशी काचिदस्ति विश्वत्रयेऽङ्गना // 239 // धात्रा मदर्थमेवैषा व्यधायि यदियं मुहुः / मां लोला प्रेक्षते तेन गत्वनां स्वीकरोम्यहम् // 240 // विचक्षणस्तु तां दृष्ट्वा लोलामेकाकिनी वने / न दोलायितचित्तोऽभूत् स्थितो न्यग्दृष्टिरुत्तमः // 241 // प्रवृत्तो गन्तुमन्यत्र जडमाकृष्य सोऽग्रतः / मन्वानोऽपायभूतं तदर्शन चित्तविप्लवात् // 242 // यावत्तौ गच्छतः स्तोकं भूभागं तावदागता / तच्चेटी सा जगौ श्रव्यं भवद्भयां वचनं मम // 243 / / मत्स्वामिनी विमुच्येह चलितौ यद् युवां जवात् / तेनैषा प्रसरन्मूर्छा म्रियते वां वियोगतः // 244 // युवाभ्यां तत् समागत्य सा स्वस्थीक्रियतां ततः / एतत्स्वरूपमखिलं कथयिष्याम्यनाकुला // 245 // विचक्षणं जडोऽवादीद् भ्रातस्तत्रोपगम्यताम् / स दध्यौ सुन्दर नेदं नूनमेषा प्रतारिका // 246 // अप्रमत्तोऽथवा यामि प्रमत्तो हि छलं व्रजेत् / इत्यसौ तद्वचो मत्वा तद्युतोऽगात् तदन्तिकम् // 247|| स्वस्थीभूताऽथ सा योषिदपृच्छच्चेटिकां जडः / अस्याः किं नाम ? सा प्राह स्वामिनी रसनाभिधा // 248 // किंनामिका त्वमित्युक्ते जडेनाऽथ जगाद सा / देवाऽहं लोलताभिख्या किं प्रसिद्धाऽपि विस्मृता ? // 249 // महाभुक्तौ चिरं कर्मपरिणाममहीभुजः / नगरेऽव्यवहाराख्ये बभूव भवतोः स्थितिः // 250 // एकाक्षवासनगरे तदादेशात् ततो युवाम् / आगतौ विकलाक्षाणां निवासे तदनन्तरम् // 251 // वसन्ति तत्र प्रथमं पाटके द्वीन्द्रिया जनाः / तन्मध्ये युवयोर्दत्तं राज्ञा वदनकोटरम् // 252 // सदा स्वाभाविकं चेदं विद्यतेऽत्र महाबिलम् / युष्मदर्थं कृता चात्र वेधसा स्वामिनी मम // 25 // ततः प्रभृति चैषा मे स्वामिनी सहिता मया / युवाभ्यां सह सर्वत्र विललास रसामृता // 254 // विकलाक्षेत्र पञ्चाक्षे भवतोविरहासहा / यदियं तेन भवतोश्चिरं परिचिताऽस्म्यहम् // 255 // श्रुत्वनां लोलतावाचं चित्तबालकशाकिनीम् / जडो दध्यौ कृतार्थोऽहं सम्पन्नं मद्विकल्पितम् // 256 // १.ख्या विस्मृता संस्तुतापि किम् // 249 //