________________ प्रलो० 109-167] वैराग्यरतिः / मया ज्ञातं हसत्येषा पाण्डित्यस्य मदेन माम् / तत् पराभवकृत् पापा न स्थाप्या दृष्टिगोचरे // 139 // स्तब्धचित्तविलिप्तात्महृदयेनाऽथ भाषितम् / गच्छ रे ! दृष्टिमार्गान्मे नेह स्थातुं तवोचितन् // 140 // पण्डिता त्वमहं मूर्खः सङ्गो नावसमञ्जसः / तद्योग्यसङ्गमेनैव स्वं पाण्डित्यं कृतार्थय // 141 // ज्ञात्वा प्रसादनायोग्यं ततः सा मां मदोद्धतम् / मन्त्राहता भुजङ्गीव करिणीवाऽङ्कशक्षता // 142 // वल्लीवोन्मूलिता चान्द्री ज्योत्स्नेव घनसंहृता / सर्वथा दीनवदना साध्वसक्षीणमानसा // 143 // दृष्ट्वैव कलुषं चित्तसरोऽन्यत्र यियासतः / विरुतैः स्नेहहंसस्य शोभिता नू पुरास्वैः / / 144 // निर्गता मामकगृहात् प्राप्ता तातस्य मन्दिरम् / स्थितोऽहं स्तन्भवत् तावदशुष्यति विलेपने // 145|| जातो मेऽनुशयस्तत्र मनाक शोकमुपागते / उद्भूताः सात्त्विका भावास्तद्रागो मामबाधत // 146 / / अत्रान्तरे समायाता माता विमलमालती / स्थिता भद्रासनेऽकारि मया चाकारगोपनम् // 147 // ततो माता जगौ वत्स ! सुन्दरं न कृतं त्वया / तिरस्कृता खरैर्वाक्यैर्यदियं नरसुन्दरी // 148 // अब्जिनीव हिमाश्लिष्टदलोदश्रुविलोचना / निर्गतेयमितो भीता पतिता मम पादयोः // 149 // मया पृष्टं किमेतत् ते ? साऽऽह मां बाधते ज्वरः / प्रवालशय्याशयने शायिता सा ततो मया // 15 // खाद्यमानेव सिंहेन प्लुष्यमाणेव वह्निना / प्रतिक्षणं मया दृष्टं तत्रोद्वर्त्तनतत्परा // 151 // ततो मया पुनः पृष्टं कुतो दाहज्वरोऽजनि ? / प्रत्यूचे दीर्धनिःश्वासैस्तया किञ्जन नो गिरा // 152 / / निश्चित्य मानसीं पीडां निर्बन्धेनाऽथ भाषिता / सर्वं त्वदपमानस्य सा वृत्तान्तमचीकथत् // 153 / / कृत्वा शीतोपचारौषं ततः साऽऽश्वासिता मया / वत्से ! धीरा भवोद्वेगं मुञ्चाऽऽटम्बस्व साहसम् // 154 // यामि पार्श्वे कुमारस्याऽनुकूलं ते करोम्यहम् / प्रतिकूलासहो मानी स्वाराध्योऽयं त्वयाऽनघे ! // 155 // इमां मद्वाचमाकर्ण्य तथेति प्रतिपद्य सा / उच्छ्वासं प्राप मेघाम्बुपृक्ता पल्वलभूरिव // 156 / / वृष्टिराकालिकी तस्माद् वक्रचित्तातिचारजा / तन्नेत्रयोस्त्वया वत्स ! प्रगुणीभूय वार्यताम् // 157|| साऽनौ दन्दह्यते बाला ज्ञात्वा त्वत्प्रतिकूलताम् / मज्जत्यामज्ज(?)ममृते श्रुत्वा भाव्यनुकूलताम् // 158 // अतो यन्मुग्धया किञ्चिदपराद्धं तया तव / प्रणतेषु दयाशाली तद्भवान् क्षन्तुमर्हति // 159 / / भवामि यावत् प्रगुणः श्रुत्वेमां जननीगिरम् / मम तावद् गिरीन्द्रेण दत्तं हृदि विलेपनम् // 160 // जननीवाग्गुणारूढस्तेनाऽऽकृष्य धनुः कृतः / प्रवृत्तो वर्षितुं बाणान् परुषान् वचनानथ // 161 // न कार्य मम सन्धानं पापयाऽम्ब ! तया सह / असाध्यसिद्धिप्रणयी यत्नोऽत्र तव निष्फलः // 162 // ततः प्रतिगता माता तस्यै व्यतिकरं जगौ / पपात मूर्छिता भूमौ ततो वज्राहतेव सा // 163 // शीतलैलब्धचैतन्या तालवृन्तानिलैरथ / भुवं प्लावयितुं लग्ना मुक्तैर्नयननिझरैः // 164 // सा ववर्षाश्रुवारीणि वियोगाग्निव्ययेच्छया / विदाञ्चकार बालाऽन्तर्न चैनं वडवानलम् // 165 // मयाऽथाभिहितं पुत्रि ! शोकोऽयं प्रविमुच्यताम् / स्वयं गत्वा प्रसाद्योऽयं कठोरहृदयस्त्वया // 166 // आर्दीकत्तं मनः शक्यं कामिनां मार्दवाम्बुना / उपायमेकमित्येनं कृत्वा स्वनियतिस्थिरा // 167 // 1. पुनः पृष्टं मया जातः कुतो // 2. वृष्टिरोत्पातिकी त॥