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________________ चैत्यवंदनमहाभाष्ये नमस्कारसूत्रस्य उल्लेखः / [प्राकृत " एयं तु जं पंचमंगलमहासुअक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेणं अणंतगमपज्जवेहिं सुत्तस्स पिहब्भूयाहिं निजुत्ति-भास-चुण्णीहिं जहेव अशंतनाण-दसणधरेहिं तित्थयरेहिं वक्खाणिसं, तहेव समासओ वक्खाणिजंतं आसि, अहऽन्नया कालपरिहाणिदोसेणं ताओ निज्जुत्ति-भास-चुन्नीओ वुच्छिन्नाओ, इओ य वच्चंतेणं कालसमएणं महिड्डीपत्ते पयाणुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुअहरे समुप्पन्ने, तेणेसो 5 पंचमंगलमहासुअक्खंधस्स उद्धारो मूलसुत्तस्स मज्झे लिहिओ, मूलसुत्तं पुण सुत्तत्ताए गणहरेहिं, अत्थत्ताए अरिहंतेहिं भगवंतेहिं धम्मतित्थगरेहिं तिलोयमहिएहिं वीरजिणिंदेहिं पन्नविअंति, एस वुड्डसंपयाओ। इत्थ य जत्थ जत्थ पयं पएणाणुलागं सुत्तालावगं न संबज्झइ तत्थ तत्थ सुयहरेहिं कुलिहियदोसो न दायव्वु त्ति, किंतु जो सो एयस्स अचिंतचिंतामणिकप्पभूयस्स महानिसीहसुयक्खंधस्स पुवायरिसो आसी महुराए सुपासनाहथूहे, पनरसहिं उववासेहिं विहिएहिं सासणदेवीए मम अप्पिउ ति, तहिं चेव खंडाखंडीए 10 उद्देहियाइएहिं हेऊहिं बहवे पत्तगा परिसडिया, तहावि अच्चंतसुमहत्थाइसयं इमं महानिसीहसुअक्खंध कसिणपवयणस्स परमसारभूयं परं तत्तं महत्थं ति कलिऊण पवयणवच्छल्लत्तणेणं बहु भव्वसत्तोवयारयं च काउं तहा य आयहियट्ठयाए आयरियहरिभद्देणं जं तत्थायरिसे दिळं तं सव्वं समईए सोहिऊण लिहिअंति, "पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध( नवकार )नी जे आ व्याख्या छे ते खूब विस्तारथी अनंतगम अने अनंत पर्यायोथी सूत्रथी पृथक्भूत नियुक्ति, भाष्य तथा चूर्णि द्वारा-जेवी रीते अनंत 15 ज्ञानदर्शनधारक तीर्थंकरोए व्याख्या करेली हती तेवी ज रीते संक्षेपथी-चाली आवती हती; परंतु पडता काळने लीधे कोइक समये आ नियुक्ति, भाष्य तथा चूर्णिनो विच्छेद थई गयो / त्यारपछी केटलाक समये महाऋद्धिमा पदानुसारी लब्धिवाळा वज्रस्वामी नामना द्वादशान्त श्रुतज्ञानना धारक आचार्य उत्पन्न थया। तेमणे आ पंचमंगलमहाश्रुतस्कंधनो उद्धार करीने मूळसूत्रनी अंदर लख्यो / मूळसूत्र ए सूत्रथी गणधरोए रचेलं छे अने अर्थथी अरिहंत 20 भगवंत, धर्मतीर्थंकर, त्रैलोक्यपूजित श्रीवीरजिनेश्वरे प्ररूपेलं छे। आ प्रमाणे वृद्ध संप्रदाय छे ( अर्थात् पूर्वाचार्योथी चाली आवती मान्यता छ / ) __आमां परस्पर एक पदनो बीजा पद साथे संबंध होय एवी रीते सळंग सूत्रना आलावा ज्यां ज्यां जोवामां न आवे त्यां त्यां बराबर लख्युं नथी एवो दोष श्रुतधरोए काढवो नहि; कारणके अचिंत्यचिंतामणि तुल्य आ महानिशीथश्रुतस्कंधनो जे प्राचीन आदर्श (प्रति ) मथुराना 25 सुपार्श्वनाथ भगवानना स्तूपमा हतो ते पंदर दिवसना उपवास करवाथी शासनदेवीए मने आप्यो, पण तेमां खंडित थई जवाथी तेमज उधेई वगेरे कारणोथी घणां पानां सडी गयां छे ( खंडित थई गयां छे ) तो पण अत्यंत महान अतिशयवाळा आ महानिशीथश्रुतस्कंधने समग्र प्रवचनना परम सारभूत परम तत्त्व तथा महा अर्थयुक्त समजीने प्रवचन उपरना वात्सल्यथी, वळी, घणा भव्य जीवोने उपकारक छे एम समजीने तेमज पोताना आत्माना कल्याण माटे आचार्य हरिभद्रे 30 ते आदर्शमा जे जोयुं ते बधुं पोतानी मति प्रमाणे शुद्ध करीने लख्युं छे।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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