________________ चैत्यवंदनमहाभाष्ये नमस्कारसूत्रस्य उल्लखः। [प्राकृत तथा अष्टौ संपदो- महापदापरनामानि विश्रामस्थानानि, उपधानविध्यादावष्टाध्ययनाद्यात्मकतया प्रत्यध्ययनाचेकैकाचामाम्लकरणेनाष्टानामेवाचामाम्लानां भणनात् , शेषविशेषस्तु प्रागुक्तसंपवारख्याख्यानुसारतो बोध्यः / अथ कथं नवसु पदेषु अष्टसंपद इत्याह- 'तत्थ' त्ति तासु अष्टासु संपत्सु मध्ये क्रमेण सप्त संपदः 5 पदैः पूर्वोक्तस्वरूपैस्तुल्याः- समानाः, अष्टमी पुनः संपत् सप्तदशाक्षरप्रमाणा पर्यंतवर्तिपदद्वयात्मिका च यथा-'मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं,' यदुक्तं चैत्यबंदनाभाष्यप्रवचनसारोद्धारादिषु "पंचपरमिट्ठिमंते पए पए सत्त संपया कमसो / पजंत सत्तरक्खरपरिमाणा अट्ठमी भणिया // " एवं वा चतुर्थपदस्य पाठः- 'नवक्खरऽट्ठमि दुपय छट्ठी' अष्टमी संपत् ‘पढमं हवइ मंगलं' 10इति नवाक्षरप्रमाणा ज्ञेया, षष्ठी पुनः ‘एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो' ति द्विपदमाना, अभ्यधायि तथा नवकारमा आठ संपदाओ छे अर्थात् विश्रांतिनां आठ स्थानो छे, जेने महापद पण कहेवामां आवे छे; कारणके उपधानविधि' वगेरेमा (नवकार ) आठ अध्ययनादिरूप होवाथी अने दरेक अध्ययनादि दीठ एक एक आयंबिल करवानी विधि मुजब आठ ज आयंबिल करवानुं कह्यु होवाथी नवकारमा आठ संपदाओ छ। बाकी जे विशेषता छे ते पहेलां जणावेला संपवारनी 15 व्याख्याने अनुसारे समजी लेवी / नवपदमा आठ संपदाओ शी रीते समजवी ? तेनो उत्तर आपतां जणावे छे के ते आठ संपदाओमां पहेली सात संपदाओ एक एक पद जेटली छे, ज्यारे आठमी संपदा 'मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलं'-ए प्रमाणे सत्तर अक्षरनी अने बे पदनी बनेली छे / चैत्यवंदनाभाष्य तथा प्रवचनसारोद्धारमा कयुं छे के "-पंचपरमेष्ठिमंत्रमा एक एक पदमां अनुक्रमे सात 20 संपदाओ छे अने छेल्ली आठमी संपदा सत्तर अक्षर प्रमाणनी छ / " अथवा अहीं गाथाना चोथा पादमा 'नवक्खरऽहमी दुपय छट्ठी' एवो पाठ समजवो / तेथी आठमी संपदा ‘पढमं हवइ मंगलं ' ए प्रमाणे नव अक्षर प्रमाणनी समजवी। छट्ठी संपदा 'एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो' एम बे पदनी समजवी / 1 सळंग बोलता बोलतां थाकी न जवाय तथा अर्थनी संगति सचवाय ए माटे वचमां ते ते पदो आगळ थोडी विश्रांति लेवानी होय छे। आवां विश्रांतिनां स्थानोने संपदा कहेवामा आवे छे / आ संपदाओमां केटलीकवार अनेक पदोनो समावेश होय छे तेथी एने 'महापद' पण कहेवामां आवे छे। 2 प्रस्तुत ग्रंथां आ पछी तुरत ज 'उपधानविधि छपायेल छे। 3 प्रस्तुत ग्रंथमा पृ० 450 पर 'प्रवचनसारोद्धार'नी आ गाथा छपायेल छे। 4 अहीं भाष्यनी जे गाथार्नु विवेचन चाले छे ते प्रस्तुत संदर्भनी शरुआतमा जे गाथा आपेली छे ते अभिप्रेत जणाय छ।