________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। न चैवं एसो पंचेत्यत्र श्लोकच्छंदोभंग इति वाच्यं, गाथानाम छंदोऽन्तररूपत्वादस्य, उक्तं च छंदःशास्त्रे “विषमाक्षरपादं वा पादैरसमं दशधर्मवत् यच्छन्दो नोक्तमत्र गाथेति तत्सूरिभिः प्रोक्ता / " एवंविधाश्च त्रयस्त्रिंशदक्षरप्रमाणा अनेकश आगमे दृश्यन्ते तथाहि ‘जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं' तथा 'अहं च भोगरायस्स, तं च सि अंधगवण्हिणो' इत्यादि / शंका—आ प्रमाणे अक्षरोनी संख्या स्वीकारवाथी 'एसो पंचनमुक्कारो सव्वपावप्पणासणो मंगलाणं च सव्वेसि पढमं हवइ मंगलं' मां श्लोक ( अनुष्टुप ) नामना छंदनो भंग थशे / ' समाधान-अहीं श्लोक ( अनुष्टुप ) नामनो छंद नथी, पण 'गाथा' नामनो जुदा 10 प्रकारनो छंद छे / (तेथी छंदोभंगनो दोष अहीं लागतो नथी ) छंदःशास्त्रमा कयुं छे के-"विषम अक्षरवाळा जेमां पादो होय अथवा 'दशधर्म'वाळा' श्लोकनी जेम जेमां पादो विषम होय तेवा जे छंद- अहीं (छंदःशास्त्रमा ) वर्णन जोवामां न आवे तेने आचार्यो 'गाथा' कहे छ / " ___ आवी तेत्रीश अक्षरनी गाथाओ आगमोमां अनेकवार जोवामां आवे छे, जेमके..'जहाँ दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं / ......' तेमज 15 .. 'अहं च भोगरायस्स, तं च सि अंधगवण्हिणो / .........' वगेरे 1 श्लोक ( अनुष्टुप ) नामना छंदमां चार पाद होय छे अने दरेक पादमा आठ आठ अक्षर होय छे / अहीं 'पढमं हवइ मंगलं'-ए पादमानव अक्षर होवाथी छेदनो नियम जळवातो नथी, तेथी छंदोभंग थशे एवो शंकाकारनो आशय छ / 2 महाभारतना पांचमा पर्वना तेत्रीशमा अध्यायमा 'दश धर्म' थी शरू थतो नीचे मुजबनो 82 मो श्लोक छे: दश धर्म न जानन्ति धृतराष्ट्र निबोधनात् / ___ मत्तः प्रमत्त उन्मत्तः क्रुद्धः श्रान्तो बुभुक्षितः / त्वरमाणश्च भीरुश्च लुब्धः कामीति ते दश // - [अर्थः-हे धृतराष्ट्र ! 1 गर्विष्ठ 2 प्रमादी 3 उन्मत्त 4 क्रोधी 5 थाकेलो 6 भूख्यो 7 उतावळ करी रहेलो 8 भीरु 9 लोभी अने 10 कामी-आ दश माणसो समजाववा छतां पण धर्मने समजी शकता नथी।] - आमा छ पाद छ। एटले व्रण त्रण पादनी बे गाथाओ अथवा छ पादनी एक गाथा समजवी, एम आचार्य श्रीहेमचंद्रसूरिमहाराजे खोपज्ञवृत्तिसहित 'छंदोनुशासन' मां नीचे प्रमाणे जणाव्युं छे:-- .. __ "गाथात्रानुक्तम् / अत्र शास्त्रे यन्नोक्तं छन्दस्तद् गाथासंज्ञम् , यथा-'दश धर्म न जानन्ति धृतराष्ट्र निबोधनात् / मत्तः प्रमत्त उन्मत्तः क्रुद्धः श्रान्तो बुभुक्षितः। त्वरमाणश्च भीरुश्च लुब्धः कामीति ते दश॥' अत्र त्रिभिः षड्मिा पादैः श्लोकः ॥"-पृ. 46 3 'श्रीदशवैकालिकसूत्र' ना प्रथम अध्यायनी आ बीजी गाथा छे अने आखी गाथा नीचे प्रमाणे छे: "जहा दुमस्स पुप्फेसु, भमरो आवियइ रसं। ___ण य पुप्फ किलामेइ, सो अ पीणेइ अप्पयं // 2 // " 4 'श्रीदशवैकालिकसूत्र' ना द्वितीय अध्यायनी आ आठमी गाथा छे अने आखी गाथा नीचे प्रमाणे छे: "अहं च भोगरायस्स, तं च सि अंधगव(वि)ण्हिणो।' मा कुले गंधणा होमो, संजमं निहुओ चर // 8 // ". 5 आ बन्ने छंदोमां बीजा पादमां नव अक्षरो छे तेथी तेत्रीश अक्षरनी गाथा अहीं समजवानी छ।