________________ 15 [.5] चैत्यवंदनमहाभाष्ये नमस्कारसूत्रस्य उल्लेखः वनसहि नव पय नवकारे अट्ठ संपया तत्थ / सग संपय पयतुल्ला सतरक्खर अट्ठमी दुपया // 30 // धर्मकीर्तिमरिरचिता टीका वर्णा-अक्षराणि अष्टषष्टिः नमस्कारे-पंचपरमेष्ठिमहामंत्ररूपे भवन्तीति शेषः, उक्तं च नमस्कारपञ्जिका-सिद्धचक्रादौ "पंचपयाणं पणतीस वण्ण चूलाइ वण्ण तित्तीसं / ___एवं इमो समप्पइ फुडमक्खरअट्ठसठ्ठीए // " 10 तथा अष्टप्रकाश्यां "आग्नेय्यादिविदिग्व्यवस्थितेषु दलेषु चूला पादचतुष्कम् / " 'एसो पंचनमुक्कारो, सव्वपावप्पणासणो / मंगलाणं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं // 1 // ' इति ध्यायेत् , तथा नव पदानि विवक्षितावधियुक्तानि नमोऽरिहंताणमित्यादीनि, न तु स्त्याद्यतानि, भणितं च ___ "सत्त पणे सत्त सत्त य नवे अहूँ य अहूँ अहूँ नवें हुंति / इय पय अक्खरसंखा असहू पूरेइ अडसट्ठी // " अनुवाद गाथार्थ-नमस्कार महामंत्रमा वर्ण एटले अक्षरो अडसठ छे, पदो नव छे अने संपादाओ आठ छे / तेमां सात संपदाओ एक एक पदनी बनेली छे अने आठमी संपदा सत्तर अक्षरोनी तथा बे पदनी बनेली छे। 20 टीकार्थ-पंचपरमेष्टिमहामंत्ररूप नमस्कारसूत्रमा वर्ण एटले अक्षरो अडसठ छे / नमस्कारपञ्जिका तथा सिद्धचक्र वगेरेमां कह्यु छ के–“पांच पदना पांत्रीश अक्षरो तथा चूलिकाना तेत्रीश अक्षरो-ए प्रमाणे मळीने आ नमस्कारमंत्र अडसठ अक्षरोमां स्फुट रीते समाई जाय छे।" ___तथा अष्टप्रकाशीमां (श्रीमद् हेमचंद्रसूरिमहाराजप्रणीत योगशास्त्रना आठमा प्रकाशना 25 34 मा श्लोकनी स्वोपज्ञवृत्तिमां) कयुं छे के-"आग्नेय आदि विदिशाओमां रहेली चार पांखडी ओमां-१ एसो पंचनमुक्कारो 2 सव्वपावप्पणासणो 3 मंगलाणं च सव्वेसिं 4 पढमं हवइ मंगलं-(नवकारनी) आ चार चूलिकाना पदोनुं ध्यान करवू / अहीं 'पद' शब्दथी विवक्षित अवधिवाळा 'नमो अरिहंताणं' वगेरे नव पदो अभिप्रेत छे, परंतु 'सि' अने 'ति' वगेरे जेना अंतमां होय एवां (व्याकरणनी परिभाषावाळां) पदो अभिप्रेत नथी / कयुं छे के-“सात, पांच, 30 सात, सात, नव, आठ, आठ, आठ, अने नव-आ प्रमाणे पदना अक्षरोनी संख्या अडसठ छे / " 1. आ पहेला 'योगशास्त्र' मां नीचे मुजब उल्लेख छे: "हृदयकमळमां मध्यनी कर्णिकामां 'नमो अरिहंताणं' पदनु, तथा पूर्व आदि चार दिशामा रहेली चार पाखडीओमा अनुक्रमे 'नमो सिद्धाण 'नमो आयरियाणं' 'नमो उवज्झायाण' तथा 'नमो लोए सव्वसाहणं' नुं ध्यान करवं" - योगशास्त्र' आठमो प्रकाश श्लो. 33-34