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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। अनेक भव्य जीवोना उपकार माटे अने पोताना आत्महितार्थे ते आदर्शमां जे लख्युं हतुं तेने बुद्धिपूर्वक संशोधीने लख्युं छे, अने बीजा आचार्यो पैकी सिद्धसेन दिवाकर, वृद्धवादी, यक्षसेन, देवगुप्त, यशोवर्धन क्षमाश्रमणना शिष्य रविगुप्त, नेमिचंद्र, जिनदासगणि, क्षमक, सत्यश्री वगेरे युगप्रधान श्रुतधरोए ते सूत्रने बहुमान्य कयु हतुं / हवे पछी तुरत ज शीर्षक 5 हेठळ छपायेल श्रीदेवेन्द्रसूरिकृत 'चैत्यवंदन महाभाष्य' उपर श्रीधर्म-5 कीर्तिनी जे टीका छे तेमां पण आ महानिशीथसूत्रना संकलयिता आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि विशे खास नोंध लीधी छे के-आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिए मथुराना श्रीसुपार्श्वनाथना स्तूपमा रहीने पंदर दिवसना उपवास कर्या तेथी प्रसन्न थयेली शासनदेवीए आ महानिशीथसूत्रनो प्राचीन आदर्श तेमने आप्यो / [आ हकीकतनो निर्देश करती पंक्ति ( "महुराए...अप्पिउ त्ति" जुओ- चैत्यवंदन महाभाष्य' पृ. 68, पं. 8-9) श्रीमहानिशीथसूत्र'मां मळती नथी; जो के तेनो अनुवाद नीचे आप्यो छे / 10 जुओ पृ. 53, पं. 16-17] ____ आ हकीकत उपरथी ए जणाय छे के श्रीहरिभद्रसूरिए महानिशीथसूत्रनुं संकलन कर्यु एटलं ज नहीं, ए सूत्रनो मूळ आदर्श मेळववा माटे तेमने खास आराधना करवी पडी। नमस्कारसूत्रनो इतिहास आपतां आचार्य श्रीहरिभद्रसूरि कहे छे के-पूर्व पंचमंगलश्रुतस्कंध (पंचनमस्कार ) पृथक् सूत्र हतुं, तेनी उपर घणी नियुक्तिओ, घणां भाष्यो अने घणी चूर्णीओ 15 हती, पण काळदोषथी ते बधानो नाश थई गयो / ए पछी महर्द्धिप्राप्त पदानुसारी शक्तिवाळा द्वादशांगधारी वनस्वामी थया, जेमणे पंचमंगलश्रुतस्कंधने मूळसूत्रोमा लख्यो / आ उपरथी एम समजाय छे के, पूर्वे नमस्कारसूत्र खतंत्र सूत्र हतुं पण श्रीवज्रस्वामीए सूत्रग्रंथोना आरंभमां गोठव्या पछी आज सुधी ते सूत्रोना आरंभ-मंगळ तरीके सूत्रोनी साथे ज जोडायेलं मळे छ / ___अनुवाद मूळपाठनी नीचे आपवामां आव्यो छे / महानिशीथमां अनेक स्थळे सूत्रपाठ 20 खंडित होवाने लीधे अर्थ संतोषकारक समजातो नथी, छतां अनुवादनी सळंगसूत्रता जाळववाना हेतुथी ज पूर्वापर भागोने ख्यालमां राखीने अर्थ जोडवानो ते ते स्थळे प्रयास कर्यो छे ए बाबत लक्ष्यमां राखवा वाचकोने खास विनंती छे / तेनुं एक कोष्टक अने केटलीक विगतो पण साथे ज मूकेली छे /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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