________________ वाया छेते। सिरिमहानिसीहसुत्तसंदब्भो। [प्राकृत परिचय श्रीमहानिशीथसूत्रना त्रीजा अध्ययननो आ संदर्भ श्री वर्धमान जैन आगममंदिर, पालीताणाथी प्रकाशित “आगमरत्नमञ्जूषा" अंतर्गत महानिशीथसूत्रना पृ. 282-1 थी 283-3 मांथी लेवामां आव्यो छे / तेना पाठभेदो पू० मुनिराज श्रीपुण्यविजयजीनी प्रेसकॉपीमांथी लीधा छ / तेमणे 5जे प्रतिओनो उपयोग को छे तेनी जे संज्ञा तेमां आपेली छे ते संज्ञाओनो अहीं आ रीते परिचय आप्यो छे:P संज्ञा ए पू. मु. श्रीपुण्यविजयजी महाराजे ह. लि. ताडपत्रीय प्रति उपरथी मूळ आदर्शरूपे प्रेस कॉपी करावी ते। B पू. महाराजश्रीनी प्रेसकॉपीमां B संज्ञाथी पाठो लेवाया छे ते / 10 T पू. महाराजश्रीनी प्रेसकॉपीमा 2 संज्ञाथी पाठो लेवाया छे ते। S पू. महाराजश्रीनी प्रेसकॉपीमां 'सु' नी संज्ञाथी पाठो लीधा छे ते। A संज्ञा आगमरत्नमंजूषा-पू. आ. श्रीसागरानंदसूरिजीए जे प्रति उपरथी पाठ तैयार करेल छे ते / पू. पुण्यविजयजीए जे पाठांतरो नोंध्यां छे तेमांथी केटलांक पाठांतरो मूळपाठना 15 व्यवस्थित अनुवाद माटे खूब ज जरूरी अने उपयोगी होवाथी ते पू. मुनिश्री जंबूविजयजीनी सूचनानुसार मूळपाठमां उपर लई लीधां छे अने तेनी जगानो पाठ नीचे M संज्ञाथी निर्देश्यो छे। आ पाठभेदोमां ण, न अने अशुद्ध पाठोने अहीं लीधा नथी। .. समग्र रीते नमस्कारमंत्रनी चूलिका साथेनी संकलना अने ते पदोनुं महत्त्व आ सूत्रमा जोवा मळे छ / उपधानतप विना नमस्कार वगेरे सूत्रोनी वाचना लई न शकाय ए विशे आ सूत्र भार20 पूर्वक निर्देश करे छे / वळी, आ नमस्कारमंत्रनी संहिता (उच्चारण पद्धति ) विशे जेटली माहिती अहीं मळे छे तेटली बीजे मळती नथी / मंत्रना उच्चार विशे स्वर, वर्ण, पद, पदाक्षर, मात्रा, बिंदु अने घोष ( उदात्त, अनुदात्त, स्वरित भेदपूर्वक) उच्चार करवानुं विधान करे छे / एटलं ज नहीं, परंतु तेनी बहुमानपूर्वक कराती तपोमय आराधना प्रसंगे विघ्नो आवी न पडे ते माटे तेना आरंभयोग्य शुभ काळनुं निरीक्षण करी ते करवानुं विधान छे अने ते माटे एनी पवित्रता बताववा अने 25 जाळववा वाचना लेतां शुभ तिथि, करण, मुहूर्त, नक्षत्र, योग, लग्न अने चंद्रबळ जोवानो आदेश करे छे / आ सूत्रने महामंत्र अने प्रवर विद्याओना बीजभूत जणावे छ / ___श्रीहरिभद्रसूरि आ महानिशीथसूत्रना आदर्श माटे ऐतिहासिक विगत रजू करे छे के-आ सूत्रमा ज्यां सूत्रना आलापकोनो संबंध न मळे त्यां श्रुतधरोनी खामी न काढवी / तेओ तेनुं कारण आपता कहे छे के-आ महानिशीथसूत्रनो प्राचीन आदर्श खंडित-त्रुटित हतो, ऊघेईथी 30 केटलांये पानां सडीने जीर्णशीर्ण थई गयां हतां, छतां अत्यंत महार्थवाळो 'महानिशीथश्रुतस्कंध' ए समग्र प्रवचनना सारभूत छे एम समजीने प्रवचनवात्सल्यथी आचार्य श्रीहरिभद्रसूरिए