________________ नमस्कार स्वाध्याय। विभाग] शास्त्रनुं प्रकरण ते 'अध्ययन' (अर्ध० को०) पदा-अंतमा विभक्तिवाळा शब्दने 'पद' कहेवाय / “तदन्तं पदम्" (सिद्धहेम व्या० 1.1.20) अर्थनुं जे वाचक होय अथवा द्योतक होय तेने 'पद' कहे छ। “पयमत्थवायगं जोयगं च तं नामियाइं पंचविह" (वि० भा० 1003) शब्दोनो समूह, वाक्य तेने 'पद' कहे छे।। पद्यना चोथा भाग ( पाद ) ने 'पद' कहे छे। (पा० म०) अर्थनी परिसमाप्तिवाडं वाक्य ते 'पद' कहेवाय / 'अत्थुवलद्धी जत्थ तु तं होति पदं ति' (पंचकल्पभाष्य, 1) पदच्छेदः-अर्थना नियमन माटे (प्रायः) सामासिक पदोनु ज विश्लेषण (विग्रह) तेने 10 पदविच्छेद अगर 'पदच्छेद' कहे छे पायं पयविच्छेओ समासविसओ तयत्थनियमत्थं // ' (वि० भा० गा० 1006) जेम 'नमस्कारसूत्र' मां "अरि, हंताणं," वगेरे; ए ज प्रकारे 'आयरियाणं, उवज्झायाणं' वगेरेनो पण पदच्छेद समजवो। 'पंचणमुक्कारो'-ए अखंडित विशेषनाम होवाने कारणे तेनो पदच्छेद गणतरीमा लीधो नथी / 15 आलापक:-एक संबंधवाळा वाक्योनो समूह / (अर्ध० को०); परो, परेग्राफ (पा० म०) अक्षरः-जे (आत्माथी ) प्रच्यवे नहीं ते 'अक्षर' (वर्ण ) कहेवाय; ते ज्ञान, चेतनना अर्थमां पण वपराय छे। ___न क्षरतीत्यक्षरम् , तच्च ज्ञानं, चेतनेत्यर्थः // " (आवश्यकसूत्र, गा० १९,-व्याख्या) मात्रा:-हस्व वर्णनो उच्चारणकाळ (शब्दचिन्तामणिकोश ) अहीं 'छन्दःशास्त्र' अनुसार ह्रखनी 20 एक मात्रा अने दीर्घनी बे मात्रा गणीने जणावी छ / बिंदुः-सानुनासिक उच्चारण दर्शावतो अनुस्वार (पा० म०) चूला-चूलिकाः-चूला एटले अलंकार अथवा शिखर / "चूला विभूसणं ति य सिहरं ति य होंति एगढे।” (निशीथचूर्णि-१) श्रुतरूपी पर्वत उपर चूला-शिखरनी माफक शोभे ते 'चूला' कहेवाय / 25 "श्रुतपर्वते चूला इव राजन्ते इति चूलाः।” (-नंदीसूत्र-५७, व्याख्या-पृष्ठ 246 अ) मूलसूत्रमा न बतावेल हकीकत बताववी तेने 'चूलिका' कहे छे / (अर्ध० को०); अथवा ग्रन्थ- परिशिष्ट / (पा० म०)