________________ सिरिमहानिसीहसुत्तसंदम्भो। [प्राकृत श्रीमहानिशीथसूत्रमा नमस्कारसूत्रना तपोमय अनुष्ठान अने अध्ययन-अध्यापन माटे सूचित विगतो, कोष्टक *तप (उपप्रवरदेवता अधिष्ठित आला तपना अध्ययन पद पदच्छेद अक्षर स्वर व्यञ्जन मात्रा बिंदु धानविधि, नमस्कारसूत्र पक दिवसो मुजब)। 1 णमो अरिहंताणं | पहेलु || 3 | 1 पांच 2 णमो सिद्धाणं बीजुं 1 उपवास प्रमाण 3 णमो आयरियाणं त्रीजें तपथी 4 णमो उवज्झायाणं 2 पांच पदनी 10 5 णमो लोए सव्वसाहूणं / पांच, + 999 16 - 6 1 वाचना م م चोथु 14 साडा सात . -चूलिका - (11) 6 एसो पंचणमुक्कारो 7 सव्वपावप्पणासणो 13 1 8 810 13 - उपवासप्र माण तपथी 8 मंगलाणं च सव्वेसि 14 3 चार पदनी 9 पढम हवइ मंगलं 12 | 3 | वाचना | 68 / 68 / 69 112 13 साडा बार| 1. उपवास उपरना कोष्टकमां आवता केटलाक पारिभाषिक शब्दोनी ढूंकी समजःअध्ययनः-चित्तने जे सारी रीते अध्यात्मवाळु बनावे ते 'अध्ययन' कहेवाय / चित्तने जे सारी रीते अध्यात्म तरफ खेंची जाय ते 'अध्ययन' कहेवाय / बोध, संयम अथवा मोक्षनो अधिक लाभ करावे तेने पण 'अध्ययन' कहे छ / 20 जेण सुहज्झप्पजणं अज्झप्पाणयणमयिमयणं वा। बोहस्स संजमस्स व मोक्खस्स व जं तमज्झयणं // (वि. भा. 960) * उपधान तपनी विशेष हकीकत प्रस्तुत ग्रंथमा हवे पछी शीर्षक 6 हेठळ छपायेल 'उवहाणविहिथुत्त' नामना स्तोत्रमा जणावी छ। x णमो उवज्झायाणं' नी संपदामा ‘उवज्झायाण पदमा उ+ झा अने प्रथमर्नु णमो' पद उमेरतां त्रण पदो थाय; ते माटे 'आवश्यकसूत्र-नियुक्तिमां का छे के-- "उ त्ति उवयोगकरणे झत्ति य ज्झास्स होइ निद्देसो / - एएण उवज्झाओ एसो अण्णो वि पज्जाओ // 3198 // " ( 334) अथवा, उपाधि + आयः, अने ‘णमो' पद गणतां पण त्रण पद थाय / जुओः-भगवतीसूत्र व्याख्या, प्रस्तुत ग्रंथ पृ. 6; पं. 3. _ + णमो लोए सव्वसाहूणं' ए पदमा 'श्रीमहानिशीथसूत्र'मां पदच्छेद अने आलापक जणाव्यां नथी ते अहीं बीजां पदोनी माफक गणीने मूक्यां छ। संभव छ के 'श्रीमहानिशीथसूत्र' मां आ पाठ पडी गयो होय / जुओ 'पदच्छेद' शब्द परनी नोंध /