________________ विमाग] नमस्कार स्वाध्याय / तो सयलदेवदाणवगहरिक्खसुरिंदचंदमादीणं / तित्थयरे पुज्जयरे ते चिय पावं पणासंति // तेसि य तिलोगमहियाण धम्मतित्थंकराण जगगुरूणं / भावच्चणदव्यच्चणभेदेण दुहचणं भणियं // भावच्चण चारित्ताणुट्ठाणकटुग्गघोरतवचरणं / दव्वच्चण विरयाविरयसीलपूयासक्कारदाणादी // ___ता गोयमा ! णं एसेऽत्थ परमत्थे तं जहाभावच्चर्णेमुग्गविहारया य दव्वच्चणं तु जिणपूया / पढमा जॅईण दोन्नि वि गिहीण पढम च्चिय पसत्था // 5 ___एत्थं च गोयमा ! केई अमुणियसमयसब्भावे ओसन्नविहारी णियवासिणो अदिट्ठपरलोगपञ्चवाए संयमतीइड्डिरससायगारवाइमुच्छिए रागदोसमोहाहंकारममीकाराइसु पडिबद्धो कसिणसंजमसद्धम्मपरंमुहे नियनित्तिसनिग्धिणअकलुणनिक्किवे पावायरणेक्कअभिनिविट्ठबुद्धी एगंतेणं अइचंडरोदकूराभिग्गहिए मिच्छहिद्विणो कयसव्वसावज्जजोगपञ्चक्खाणे विप्पमुक्कासेससंगारंभपरिग्गहे "तिविहं तिविहेणं पडिवन्नसौमाइए य दव्वत्ताए, न भावत्ताए, नाममेव मुंडे अणगारे महव्वयधारी समणेऽवि भवित्ताणं एवं मन्नमाणे, सव्वहा 10 - तेथी समग्र देव, दानव, ग्रह, नक्षत्र, सूर्य अने चंद्रमा वगेरेने पण तीर्थंकरो पूज्य छे अने तेओ खरेखर पापनो नाश करे छे / ते त्रण लोकथी पूजायेला धर्मना तीर्थंकरो अने जगतना गुरुनी अर्चना भावथी अने द्रव्यधी एम बे प्रकारनी कहेली छे। .... चारित्रनुं अनुष्ठान तेमज कष्टपूर्वकनां उग्र अने भीषण तपर्नु आचरण-ए भावअर्चन छे; अने 15 विरताविरतो एटले देशविरत श्रावको पूजासत्कार तेमज दान करे-ए द्रव्यअर्चनरूप प्रकार गणाय छे। .. माटे हे गौतम ! अहीं आनुं रहस्य आ प्रकारे छे भावअर्चन ए उग्र विहाररूप छे, ज्यारे द्रव्यअर्चन ए जिनपूजा छे / प्रथम प्रकार मुनिओना माटे छे अने गृहस्थ माटे बनेय प्रकारो छे; तेमां प्रथम प्रकारनुं भावअर्चन ते प्रशंसनीय छ / 20 ..हे गौतम ! जे केटलाक शास्त्रनो सद्भाव नहीं जाणनारा; शिथिलविहारी; नित्यवासी; 'परलोकमां शुं नुकसान थशे' एनो विचार नहीं करनारा; ऋद्धिगौरव, रसगौरव, शातागौरवमां मूछित थयेला; राग-द्वेष-मोह-अहंकार-ममत्वादिमां प्रतिबद्ध; संयमरूप सद्धर्मथी पराङ्मुख; निर्दय, निर्लज, घृणित, क्लेश करनारा, कृपा विनाना अने जेमनी बुद्धि एक मात्र पापाचरणमां लागेली छे; एकांतपणे जे अत्यंत चंड, रुद्र अने क्रूर अभिग्रहोथी मिथ्यादृष्टिओ; सर्व पापकारी 25 व्यापारना पच्चक्खाण करीने समग्र संग, आरंभ अने परिग्रहथी रहित थई, त्रिविधे त्रिविधे (मन-वचन-कायाथी कृत-कारित-अनुमतिथी ) सामायिक द्रव्यथी स्वीकारे छे पण भावथी करता नथी; नामना ज मुंड छे, नामना ज अनगार छे, नामना ज महाव्रतधारी छे; श्रमण थया 1. ता.स / / 2. पणासेंति P / 3. °हिया ध° B / 4. मुवग्ग° P / . 5, जतीण P / .6. केइ / 7. विहारीणीय° P / 8. बद्ध के B / .9. हियमिच्छदद्विणो P / १०.कखाण वि° PI 11. 'तिविहं' इति पाठो। प्रतौ नास्ति / 12. सामइए PM