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________________ 50 सिरिमहानिसीहसुत्तसंदब्भो। [प्राकृत सयलनरामरतियसिंदसुंदरीरूवकंतिलावणं / सव्वंपि होज्ज जई एंगरासिण संपिंडियं कहवि // तं च जिणचलणंगुट्ठग्गकोडिदेसेगलक्खभागस्स / संनिम्मि न सोहइ जैह सारउडं कंचणगिरिस्स॥ त्ति . अहवा नाऊण गुणंतराइं अन्नेसिं ऊण सव्वत्थ / तित्थयरगुणाणमणंतभागमलभंतमन्नत्थ // . जं तिहुयणं पि सयलं, एगीहोऊणमुभमेगदिसिं / भागे गुंणाहिओऽम्हं तित्थयरे परमपुज्जेत्ति // 5 ते च्चिय अच्चे वंदे पूंए अरिहे गइमइसमन्ने / जम्हा तम्हा ते चेव भावओ णमह धम्मतित्थयरे // लोगे वि गामपुरनगरविसयजणवयसमग्गभरहस्स / “जो जित्तियस्स सामी, तस्साणत्तिं ते 'करेंति // नवरं गामाहिवई सुट्ट सुतुढे एक्कगाममज्झाओ / किं देज ? जस्स नियेंगे तेलोए एत्तियं पुव्वं // चक्कहरो लीलाए, सुङ्गु सुथेवंपि देइ" जमगणं / तेण य काँगयगुरुदरिद्दनौमं णासेइ / / "सो मंता चक्कहरं सुरवइत्तणं कंखे / "इंदो तित्थयरे उण, जगैस्स जहिच्छियसुहफलए // 10 तम्हा जं "ईदेहिं वि कंखिज्जइ एगबद्धलक्खेहिं / अइसाणुरागहियएहिं उत्तम तं न संदेहो / . समग्र मनुष्यो, देवो, इंद्रो अने सुंदरीओनां रूप, कांति तेमज लावण्य-ए बधुं जे होय, "तेने कोईपण रीते एकठां करीने एक बाजु पिंड बनाववामां आवे अने तेने जिनेश्वर भगवंतना चरणना अंगूठाना टेरवाना करोडमा भाग, अथवा लाखमा भागनी सामे मूकबामां आवे तो ते देवदेवीओना रूपनो पिंड एटलो बधो शोभाहीन बनी जाय छे के सुवर्णना पर्वत ( मेरु) नी 15 पासे राखनो ढगलो जेवो शोभाहीन लागे तेवो ते लागे छ / अथवा जगतना सर्व गुणोने भेगा करवामां आवे तो पण ते जिनेश्वरना गुणोना अनंतमा भागे पण आवता नथी / एक बाजु त्रणे जगत एकत्रित थईने एक दिशामां उभा होय अने बीजी बाजु तीर्थकर होय तो तीर्थंकर गुणमां चडी जाय छे; तेथी तीर्थंकरो परमपूज्य छ / ते ज अर्चनीय छे, वंदनीय छे, पूजनीय छ, अहंत छे, गति तथा मतिथी समन्वित छे; माटे ते ज धर्मतीर्थ20 करोने भावथी नमस्कार करो। . ____लोकोमां पण गाम, पुर, नगर, विषय, जनपद के समग्र भरतनो जे जेटला प्रदेशनो स्वामी होय छे तेनी आझाने ते प्रदेशना लोको स्वीकारे छे; परंतु प्रामाधिपति तुष्ट थाय तो एक गाममांथी केटलं आपे ? जेनी पासे जेटलं होय तेटलुं आपे / चक्रवर्ती थोडं आपे तो पण तेनाथी कुळपरंपराथी चाल्युं आवतुं दारिद्र्य नष्ट थई जाय छ। आवो चक्रवर्ती देवेन्द्रपणानी आकांक्षा सेवे 25 छे, देवेन्द्रो यथेष्ट सुखफळने आपनारा तीर्थंकरपदनी आकांक्षा राखे छे। अतिशय अनुरागी हृदयवाळा इन्द्रो पण एक लक्ष्य बांधीने जे तीर्थंकरपदनी आकांक्षा राखे छे ते तीर्थंकरो जगतमां सौथी श्रेष्ठ छे एमां संदेह ज नथी / 1. लावन्नं A / 2. एगरास सं°P, एगरासि सं° B / 3. ता तं च P / 4. संनिज्झे वि ण सोP / 5. जह छार° P / 6. मेगदिसं P / 5. हिउन्हें P, °हिउम्हं B 8. पूए आराहे गई / / 9. समण्णे य P, समण्णे / 10. जो जेत्तिय / 11. तस्साणत्ति / 12. करिति / / 13. सुट्ट सतुढे P, सुतुद्धे / / 14. नियगं छेलाए तेत्तिय पुंछं P / 15. देइ न हु मन्ने / / 16. कम्मामत° P / 17. नामं समासेइ M / 18. सा मंता P / 19. चक्कहरं चक्कहरो सु° P / 20. इंदो तित्थयरत्तं ति / / 21. जयस्सा वि ज° P / 22. इंदेही वि A1 23. रायहि / /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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