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________________ नमस्कार स्वाध्याय। विभाग] अहवा चिट्ठउ ताव सेसवागरणं गोयमा ! एवं चेव धम्मतित्थगरेति नाम 'सन्निहियं पवैरक्खरुव्वहणं तेसिमेव सुगहियनामधेज्जाणं भुवणेक्कबंधूणं अरहंताणं भगवंताणं जिणवरिंदाणं धम्मतित्थंकराणं छज्जे, ण अन्नेसि, जओ य णेगॅजम्मंतरपुट्ठमोहोवसमसंवेगनिव्वेयाणुकंपाअस्थित्ताभिवत्तीसलक्खणपवरसम्मइंसणुल्लसंतविरियाणिगूहियउग्गकट्टघोरदुक्करतवनिरंतरज्जियउत्तुंगपुन्नखंधसमुदयमहपब्भारसंविढत्तउत्तमपवरपवित्तविस्सकसिणबंधुणाहसामिसालअणंतकालवत्तर्भवभावणच्छिन्नपावबंधणेकअबिइज्जतित्थयरनामकम्मगोय-5 णिसियसुकंतदित्तचारुरूवदसदिसिपयासनिरुवमट्ठलक्खणसहस्समंडियजगुत्तमुत्तमसिरीनिवासवासवावी इव देवमणुयदिट्ठमेत्ततक्खणंतकरणलाइयचमक्कनयणमाणसाउलमहंतविम्हयपमोयकारया असेसकसिणपावकम्ममलकलंकविप्पमुक्कसमचउरंसपैवेरपढमवज्जरिसहनारायसंघयणाहिट्ठियपरमपवित्तुत्तममुत्तिधरे, ते चेव भगवंते महायसे महासत्ते महाणुभागे परमेट्ठी सद्धम्मतित्थंकरे भवंति / अण्णं च अथवा, बीजें वर्णन दूर रहो। हे गौतम ! आ प्रकारे धर्मतीर्थंकर एबुं श्रेष्ठ अक्षरोवाडं 10 जे नाम छे ते सुगृहीतनामधेय, त्रण भुवनना बंधु अरिहंत भगवंत जिनवरेंद्र धर्मतीर्थकरोने ज छाजे छे, बीजाने नहीं; केमके तेमणे मोहनो उपशम, संवेग, निर्वेद, अनुकंपा तथा आस्तिक्यलक्षणयुक्त अने अनेक जन्मोमां स्पर्शल उल्लसित सम्यग्दर्शनना बळथी तेमज वीर्यने छूपाव्या विना उप्र कष्ट अने घोर दुष्कर तपना निरंतर सेवनथी उत्तुंग महापुण्यनो राशि उपार्जित कर्यो होय छ; उत्तम, प्रवर, पवित्र, समग्र विश्वना बंधु नाथ तथा श्रेष्ठ स्वामी थया होय छे; अनंतकाळमां 15 थयेला भवोनी भावनाथी पापना बंधनोने छेदीने अद्वितीय तीर्थकरनामकर्म गोत्र तेमणे प्राप्त कर्यु होय छे; अत्यंत मनोहर, देदीप्यमान, दशे दिशाओमा प्रकाशमान, निरुपम एवा एक हजार अने आठ लक्षणोथी तेओ सुशोभित होय छे; जगतमा उत्तम जे श्रेष्ठ शोभा तेना निवास माटेना तेओ जाणे के वासगृह छे; तेमनां दर्शन थतांनी साथे ज तेमनी शोभा जोईने देवो तथा मनुष्यो अंतःकरणमां चमकी उठे छे अने नेत्रमा तथा मनमा महान विस्मय तथा प्रमोदने 20 अनुभवे छे; सघळाये पापकर्मोरूपी मेलना कलंकथी तेओ मुक्त थई गया होय छे; समचतुरस्र संस्थान तथा श्रेष्ठ जे प्रथम वज्रऋषभनाराच संघयण तेनाथी युक्त परम पवित्र अने उत्तम शरीरने तेओ धारण करनारा होय छे / आवा भगवंतो ज महायशस्वी महासत्त्वशाळी महाप्रभावी परमेश्वर तथा सद्धर्मना तीर्थकरो होय छे। वळी का छे के 1. एयं चेव धम्मतित्थकरे त्ति P / 2. संत्तिहियं P / 3. पवरुक्खरु P / 4. नामधिज्जाणं भुवणबंधूणं AI 5. जम्मभरब्भत्थमहो° P / 6. निव्वेयणु A / 7. जिओरुतंगपुण्णखंध P / 8. महप्पभार° PI 5. भव्वभावछिण्णपाव / / 10. °निवासवावास B, निवासवासवाइ दे° P / 11. °कारय अ° P / 12. पवरवरपढम / / 13. परमिट्टी /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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