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________________ सिरिमहानिसीहनुससंदम्भो। [पाहत उम्मग्गं पवत्तं ति, जहा किल अम्हे अरहंताणं भगवंताणं गंधमल्लपदीवसमजणोवलेवणविचित्तवत्थबलिधूवाइएहिं पूयासक्कारेहिं अणुदियहमन्भचणं पकुव्वाणा तित्थुच्छप्पणं करेमो, तं च णो णं तहत्ति, गोयमा ! तं वौयाएबि णो णं तहत्ति समणुजाणेज्जा। 5 एयं तु पंचमंगलमहासुयक्खंधस्स वक्खाणं तं महया पबंधेणं अणंतगमपज्जवेहि सुत्तस्स य पिहभूयाहिं निज्जुत्ती-भास-चुण्णीहिं / जहेव अणंतनाणदंसणधरेहिं तित्थयरेहिं वक्खाणियं तहेव समासओ वक्खाणिज्जंतं आसि, अहऽनया कालपरिहाणिदोसेणं ताओ निज्जुत्ती-भास-चुन्निओ वोच्छिन्नाओ। इओ य वच्चंतेणं कालसमएणं महिड्डीपत्ते पयाणुसारी वइरसामी नाम दुवालसंगसुयहरे समुप्पन्ने, तेणेयं पंचमंगलमहासुयधस्स उद्धारो मूलसुत्तस्स मज्झे लिहिओ, मूलसुत्तं पुण सुत्तत्ताए गणहरेहि 10 अस्थत्ताए अरहंतेहिं भगवंतेहिं धम्मतित्थंगरेहिं तिलोगमहिएहिं वीरजिणिंदेहिं पन्नवियं ति एस वुड्डसंपयाओ। पछी पण 'अमे अरिहंत भगवंतनी गंध, माल्य, दीप, संमार्जन, उपलेपन, वस्त्र, बलि, धूप आदि पूजा-सत्कारथी हमेशां अभ्यर्चन ( पूजन ) करीने तीर्थनी प्रभाषना करीए छीए'-ए प्रमाणे माने छे ते बका उन्मार्गने प्रवावे छे, तेमनुं आ कृत्य व्याजकी नथी; गौतम ! वचनथी पण एने 15 अनुमति आपकी नहीं।" पंचमंगलमहाश्रुतस्कंध (नवकार) नी जे आ व्याख्या छे ते खूब विस्तारथी अनंतगम अने अनंत पर्यायोपी सूत्रथी पृथक्भूत नियुक्ति, भाष्य तथा चूर्णि. द्वारा-जेवी रीते अनंत ज्ञानदर्शनधारक तीर्थंकरोए व्याख्या करेली हती तेवी ज रीते संक्षेपथी-चाली आवती 20हती; परंतु पडता कालने लीघे कोईक समये aa नियुक्ति, भाष्य तथा चूर्णिनो विच्छेद थई गयो। त्यारपछी केटलाक समये महाऋद्धिमां पदानुसारी लब्धिवाळा वनखामी नामना द्वादशान्त श्रुतज्ञानना धारक आचार्य उत्पन्न थया / तेमणे आ पंचमंगलमहाश्रुतस्कंधनो उद्धार करीने मूळसूत्रनी अंदर लख्यो / मूळसूत्र ए सूत्रथी गणधरोए रचेलं छे अने अर्थथी अरिहंत भगवंत, 25 धर्मतीर्थकर, त्रैलोक्यपूजित श्रीवीरजिनेश्वरे प्ररूपेलं छे / आ प्रमाणे वृद्धसंप्रदाय छे / (अर्थात् पूर्वाचार्योथी चाली आवती मान्यता छ।) 1. ति तहा P / 2. धूवाइतेहिं P / 3.11 एतचिहान्तर्गतः पाठः P प्रतौ पतितः। 4. पिहम्भूयहिं P / 5. वोच्छिनाओ इति पाठः / प्रतो नाखि। ६.तित्थकरेहिं P जुओ-हवे पछी छपायेल 'चैत्यवंदनमहाभाष्य
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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