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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय / ता गोयमा ! णं एवमाइ अणंतगुणगणाहिट्ठियसरीराणं तेसिं सुगहियनामधेज्जाणं अरहंताणं भगवंताणं धम्मतित्थगराणं संतिए गुणगणोहरयणसंघाए अहन्निसाणुसमयं जीहासहस्सेणंपि वागरंतो सुरवैई वि अन्नयरे वा केई चउनाणी महाइसई य छउमत्थे सयंभुरमणोयहिस्स इव वासकोडीहिंपि णो पारं गच्छेज्जा, जओ णं अपरिमियगुणरयणे गोयमा ! अरहंते भगवंते धम्मतित्थगरे भवंति, ता किमत्थे भन्नउ ?, जत्थ य णं तिलोगनाहाणं जगगुरूणं मुँवणेक्कबंधूणं तेलोक्कतग्गुणखंभपवरधम्मतित्थंकराणं केई। सुरिंदोंईपायंगुढग्गएगदेसीउ अणेगगुणगणालंकरियाँउ भत्तिभरनिभरिक्करसियाणं सव्वेसि पि वाँ पुरीसाणं . अणेगभवंतरसंचियअणिट्ठदुट्ठट्टकम्मरासिजणियदोगच्चदोमणस्सादिसयलदुक्खदारिदकिलेसजम्मजरामरणरोगसोगसंता(बेयवाहिवेयणाईण खयट्टाए एगगुणस्साणंतभागमेगं भणमाणाणं जमगसमगमेव दिणयरैकरे इव अणेगगुणगणोहे जीहग्गे विप्फुरति ताई च न सका सिंदा वि देवगणा समकालं भणिऊणं, किं पुण अकेवली मंसचक्खुणो ? ता गोयमा ! णं एस इत्थं परमत्थे वियाणेयव्वो, जहा णं जइ 10 तित्थगराणं संतिए गुणगणोहे तित्थयरे चेव वायरंति, ण उण अन्ने, जओ णं सातिसया तेसिं भारती / ___आथी हे गौतम ! आ वगेरे अनन्त गुणसमूहथी युक्त शरीरवाळा, पुण्यशाळी नामवाळा अने धर्मतीर्थना प्रवर्तावनारा अरिहंत भगवंतोना गुणगणोरूपी रत्नसमूहनुं इंद्र, कोई चार ज्ञानवाळा, अथवा महा अतिशयवाळा छद्मस्थ पण रातदिवस प्रतिपळे हजारो जीभथी करोडो वर्षों सुधीये वर्णन करे तोपण जेम स्वयंभूरमण समुद्रनो पार पामी शकाय नहि तेम पार न पामे / कारणके 15 हे गौतम ! धर्मतीर्थने प्रवर्तावनार अरिहंत भगवंतो मापी न शकाय एवा गुणरत्नोवाळा होय छे; तेथी अहीं विशेष शुं कहेवू ? ज्यां त्रण लोकना नाथ, जगतना गुरु, त्रण भुवनना एक मात्र बंधु, त्रण लोकना ते ते गुणना स्तंभरूप-आधाररूप श्रेष्ठ धर्मना तीर्थंकरोना पगना अंगूठाना टेरवानो अग्रभाग के जे अनेक गुणोना समूहथी अलंकृत छे तेना अनंतमा भागनुं सुरेन्द्रो अथवा भक्तिना ज अत्यन्त रसिक सर्व पुरुषो अनेक जन्मांतरोमां संचित अनिष्ट दुष्ट कर्मराशिजन्य दुर्गति दौर्मनस्य आदि 20 सकल दुःख दारिद्र्य, क्लेश, जन्म, जरा, मरण, रोग, शोक, सन्ताप, उद्वेग, व्याधि, वेदना आदिना क्षयने माटे वर्णन करवा मांडे त्यारे सूर्यना किरणोना समूहनी जेम भगवानना जे अनेक गुणोनो समूह एक साथे तेमना जिह्वाग्रे स्फुरायमान थाय छे तेने इन्द्र सहित देवगणो एकी साथे बोलवा मांडे तो पण ज्यां वर्णववा समर्थ नथी त्यां चर्मचक्षुधारी अकेवलीओ शुं कही शके ? तेथी गौतम ! आ विषयमा खरी हकीकत ए छे के तीर्थंकरोना गुणोना समूहोने मात्र तीर्थंकरो ज वर्णववा 25 समर्थ छे। बीजाओमां तेवु सामर्थ्य नथी; कारणके तीर्थंकरोनी ज एवी अतिशयवाळी वाणी होय छे के तेओ ज वर्णववा समर्थ छ / 1. तित्थकराणं P / 2. °णसंदोहोहसं P, णसंदोहसं० / / 3. °वरा वि P / 4. गोवहिस्स चउवास P / 5. किमेण भP, किमित्थं भ° B, किमित्थ भ / / 6. भुयणे / / 7. कलग्गण° P / 8. तित्थक P / 9. दाई पायपुढे / 10. °साओ अॅP। 11. °याओ भ P / 12. निब्भरेक° P / 13. वा सुरी M | 14. णसादि° P / 15. दालिद्द B / 16. °संतापवुव्वेय° A, संतावुव्वेवगता वा P / 17. ईणं ख° P / 18. करे वा अP। 19. सक्का सिवा वि / / 20. कालं भाणि° P / 21. एस एत्थं P / 22. तित्थयराणं P / 23. गणोह ति° B /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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