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________________ सिरिमहानिसीहसुत्तसंदभो। [प्राकृत विंदाणं सुरलोगाणं सोहग्गकंतिदित्तिलावन्नरूवसमुदयसिरीएं-साहावियकम्मक्खयजणियदिव्वकयपवरनिरुवमाणन्नसरिसविसेसीइसयाइसयलक्खणकलावविच्छड्डेपरिदंसणेणं भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणियाहमिंदैसइंदच्छराकिन्नरणरविजाहरस्स ससुरासुरस्सावि णं जगस्स 'अहो अहो अहो अज्ज अदिट्ठपुव्वं दिट्टमम्हेहिं' इणमो सविसेसउलमहंताचिंतपरमच्छेरयसंदोहं समगालमेवेगट्ठसमुंइयं दिढे ति तक्खणउप्पन्नघणनिरंतर5 बहलप्पमोया चिंतयंतो सहरिसपीयाणुरायवसपवियंभंताणुसमयअहिणवाहिणवपरिणामविसेसत्तेणे महमहंति "जंपिर परोप्पराणं विसायमुवगयहहहधीधिरत्थुअधन्नाऽपुन्ना वयमिइ णिदिरअत्ताण गमणंतरसंखुहियहिययमुच्छिरसुलद्धचेयणसुघृण्णसिढिलियसगत्तआउंचेणं पसण्णो उम्मेसनिमेसाइसारीरियवावारमुक्ककेलं अणोवलक्खैक्खलंतमंदमंददीहहुंहुंकार विमिस्समुक्कदीहउण्हबहलनीसाँसगत्तेणं अइअभिनिविट्ठबुद्धी सुणिच्छिय मणैस्स णं जगस्स, 'किं पुण तं तवमणुचिट्ठेमो जेणेरिसं पवरिद्धि लभिज्जत्ति,' तग्गयमणस्स णं दसैणा 10 चेव णियणियवच्छत्थलैंनिहिजंतंतकरयलुप्पाँइयमहंतमाणसचमक्कारे। सहित देवगणोना सौभाग्य, कान्ति, दीप्ति, लावण्य अने रूपनी शोभाने ढांकी दे छे ( निस्तेज बनावी दे छे) / स्वाभाविक (4) कर्मक्षयजनित (11) तथा देवकृत (19) एवा चोत्रीश अतिशयोना ते धारक होय छे अने ते चोत्रीश अतिशयो एवा श्रेष्ठ निरुपम अने अनन्यसदृश होय छे के तेनां दर्शन करवाथी भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिष्क, वैमानिक, अहमिन्द्र, इन्द्र, 15 अप्सरा, किन्नर, नर, विद्याधर अने सुर तथा असुर सहित जगतना जीवोने एटलुं बधुं आश्चर्य थाय छे के 'अहो अहो अहो आपणे कोई दिवस नहीं जोयेलं आजे जोडे / एक ज व्यक्तिमां एक साथे एकत्रित थयेलो अतुल, महान अचिन्त्य परम आश्चर्योनो समूह आजे आपणे जोयो।' एवा विचारथी ते क्षणे अयंत आनन्दित थयेला तेओ हर्ष अने अनुरागथी फुरायमान थता नवा नवा परिणामोथी परस्पर अत्यंत हर्षना उद्गारो काढे छे अने विहार करीने भगवान आगळ 20 चाल्या गया पछी साथे साथे पोताना आत्मानी निन्दा करे छे के 'अमने धिक्कार छे, अमे अधन्य छीए, अमे पुण्यहीन छीए'। भगवान चाल्या गया पछी तेमना हृदयने खुब क्षोभ थवाथी तेओ मूर्छित थई जाय छे अने महामुशीबते तेमनामां चैतन्य आवे छे। तेमनां गात्र अत्यन्त शिथिल थई जाय छे / आकुश्चन प्रसारण उन्मेष निमेष आदि शारीरिक व्यापारो बंध पडी जाय छे। नहीं ओळखाता अने स्खलना पामता मंद मंद दीर्घ हुंकारोथी मिश्रित दीर्घ 25 उष्ण बहु निसासाथी ज मात्र बुद्धिशाळीओ समजी शके छ के तेमनामां मन (चैतन्य ) छे / जगतना जीवो भगवाननी ऋद्धि जोईने एक मात्र विचार करे छे के आपणे एवं कयुं तप करीए के जेथी आपणने पण आवी प्रवर ऋद्धि प्राप्त थाय / भगवानने जोतां ज तेओ पोतानां वक्षःस्थल उपर हाथ मूके छे अने तेमना मनमां महान आश्चर्य उत्पन्न थाय छे। 1. ए सहाविय° P / 2. °सासाइसया कला P, °साइसयकला° TB | 3. °विच्छेड्ड / / 4. मिदं स° P / 5. अद्दिट्ट B / 6. °साओल° P / 7. समग्गल° M / 8. यं चिट्ठति / / 9. तक्खणुप्प° PI 10. ०प्पमेयचिंता अंतो P, प्पमेयचिंतयंतो / 11. °णपरि° M / 12. त्तेणं महमहमहं त्ति P / 13. हहहहधी B,°हहहवीविर° P / 14. °सुण्णपुण्ण' P / 15. चणपसण्णा उ° P / 16. उमेस A1 17. निम्मेसा B | 18. वल अ A / 19. क्खखलंत P / 20. विमिस्सामुक्कदीहुण्ह° P / 21. °सासेगंतेणं P / 22. °णसण P / 23. °णुचेटेमो P / 24. लभेजंति / 25. दंसणं चेव / / 26. लणिहिप्पंतक / 27. °इयामा /
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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