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________________ [4] सिरिमहानिसीहसुत्तसंदब्भो। स भयवं ! जइ एवं ता किं पंचमंगलस्स णं उवहाणं कायव्वं ? ' गोयमा ! पढमं नाणं तओ दया, दयाए य सव्वजगजीवपाणभूयसत्ताणं अत्तसमदरिसितं, 5 सव्वजगंजीवपाणभूयसत्ताणं अत्तसमदंसणाओ य तेसिं चेव संघट्टणपरियावणकिलावणोदावणाइदुक्खुप्पायणभयविवजणं, तओ अणासवो, अणासवाओ य संवुडासवदारत्तं, संवुडासवदारत्तेणं च दमोपसमो, तओ य समसत्तुमित्तपक्खया, समसत्तुमित्तपक्खयाए य अरागदोसत्तं, तओ य अकोहया अमाणया अमायया अलोभया, अकोहमाणमायालोभयाए य अकसायत्तं, तओ य सम्मत्तं, सम्मत्ताओ य जीवाइपयत्थपरिन्नाणं, तओ य सव्वत्थ अपडिबद्धत्तं, सव्वत्थापडिबंद्धत्तेण य अन्नाणमोहमिच्छत्तक्खयं, तओ विवेगो, विवेगाओ 10य हेयउवाएयवत्थुवियालगेगंतबद्धलक्खत्तं, तओ य अहियपरिचाओ हियगयरणे य अच्चतमैचुजमो, अनुवाद "भगवान, जो एम छे तो शुं पंचमंगल( नमस्कार मंत्र )नुं उपधान करवू जोईए ?" "गौतम, प्रथम ज्ञान प्राप्त थाय छे अने पछी दया आवे छे / (मारा आत्माने जेम सुख प्रिय छे अने दुःख अप्रिय छे तेम जगतना सर्व जीवो, प्राणीओ, भूतो अने सत्त्वोने सुख प्रिय छे 16 अने दुःख अप्रिय छे एवी ) जगतना सर्व आत्माओ प्रत्ये आत्मतुल्यतानी दृष्टि दयाथी प्राप्त थाय छ। सर्व आत्माओ प्रति आत्मतुल्यतानी भावनाथी ते जीवोने संघटना', परितापना', किलामणा', अवद्रावणा' वगेरे दुःखो उपजावां तथा भय उत्पन्न करवो तेनो मनुष्य त्याग करे छे / ए त्यागथी अनास्रव थाय छ। अनास्रव थवाथी आस्रवनां द्वारो बंध थई जाय छे। आस्रवनां द्वार बंध थई जवाथी दम (इंद्रियोनो निग्रह ) अने उपशम थाय छे। तेथी (दम अने उपशमथी ) शत्रु अने 20 मित्र ए बन्ने उपर समभाव उत्पन्न थाय छे। शत्रु अने मित्र उपर समभाव उत्पन्न थवाथी राग अने द्वेषथी रहित थवाय छे। रागद्वेषथी रहित थवाथी क्रोध, मान, माया अने लोभथी रहित थवाय छे। क्रोध, मान, माया अने लोभथी रहित थवाथी अकषायत्व प्राप्त थाय छे / अकषायत्वथी सम्यक्त्व प्राप्त थाय छ। सम्यक्स्वथी जीव वगेरेनुं ज्ञान थाय छे। जीवादि पदार्थोनुं ज्ञान थवाथी सर्वत्र अप्रतिबद्धपणुं (निर्ममत्व ) प्राप्त थाय छे। सर्वत्र अप्रतिबद्धपणाथी अज्ञान, 25 मोह अने मिथ्यात्वनो क्षय थाय छे / परिणामे विवेक प्रगट थाय छे। विवेकथी हेय अने उपादेय वस्तुनी विचारणामां एकांते लक्ष्य बंधाय छे। तेथी अहितनो त्याग थाय छे अने हितनुं आचरण 1. गजीव A / 2. गजीव B / 3. दुक्खपाय P / 4. ततो अ° B / 5. सनो / 6. च देमो' / / 7. 'या अलों / / 8. तओ स°। 9. डिबंधत्ते / / 10. वत्थूवि P / 11. हियाग P / 12. मब्भुओ MI 1 संघटना = थोडो स्पर्श करवो। 2 परितापना = परिताप उपजाववो, दुःख उपजावq। 3 किलामणा = खेद पमाडवो। 4 अवद्रावणा = बिवरावq, अतिशय त्रास पमाडवो। 5 कर्मोना बंधनुं कारण जे हिंसा वगेरे ते आस्रव कहेवाय छ।
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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