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________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 37 तओ य परमत्थपवित्तुत्तमखंतादिदसविहअहिंसालक्खणधम्माणुढाणिक्ककरणकारावणासत्तचित्तया, तओ य खंतादिदसविहअहिंसालक्खणधम्माणुढाणिक्ककरणकारावणासत्तचित्तयाए य सव्वुत्तमा खंती, सव्वुत्तम मिउत्तं, सव्वुत्तमं अजवभावत्तं, सव्वुत्तमं संबज्झन्मंतरं सब्वसंगपरिच्चागं, सव्वुत्तमं संबज्झब्भंतरदुवालसविहअच्चंतघोरवीरुग्गकट्ठतवचरणाणुट्ठाणाभिरमणं, सव्वुत्तमं सत्तरसविहकसिणसंजमाणुट्ठाणपरिपालणेक्कबद्धलक्खत्तं, सव्वुत्तमं सच्चुम्गिरणं छक्कायहियं अणिगूहियबलवीरियपुरिसक्कारपरक्कमपरितोलणं च सव्वुत्तम- 5 सज्झायज्झाणसलिलेण पावकम्ममललेवपक्खालणं ति / ता गोयमा ! एगतियअचंतियपरमसौंसतधुवनिरंतरसव्वुत्तमसोक्खकंखुणा पढमयरमेव तावायरेणं सामाइयमोइयलोगबिंदुपज्जवसाणं दुवालसंगं सुयनाणं कालंबिलादिजहुत्तविहिणोवहाणेणं हिंसौदियं च तिविहंतिविहेणं पडिकंतेण य सरवंजणमत्ताबिंदुपयक्खराणूणगं पयच्छेदघोसबद्धया पुचि पुव्वाणुपुब्वि-10 करवामां अत्यंत उद्यम प्राप्त थाय छे। तेनाथी परम पवित्र उत्तम क्षमा आदि दश प्रकारनो* अहिंसालक्षण जे धर्म तेनुं अनुष्ठान करवा अने कराववा माटे चित्तमां खूब अनुराग उत्पन्न थाय छे। ते क्षमा आदि दश प्रकारना अहिंसालक्षण धर्मनुं अनुष्ठान करवा अने कराववा माटे चित्तमां अत्यंत अनुराग उत्पन्न थवाथी सर्वोत्तम क्षमा, सर्वोत्तम मृदुता, सर्वोत्तम सरळता, सर्वोत्तम बाह्य अने आभ्यंतर सर्व संगनो परित्याग, बाह्य तथा आभ्यंतर एवां बार प्रकारनां अत्यंत घोर-वीर-उग्र अने 15 कठोर तपने आचरवामां सर्वोत्तम रमणता, सत्तर प्रकारना संयमनुं संपूर्ण अनुष्ठान अने परिपालन करवा माटे सर्वोत्तम बद्धलक्ष्यत्व ( लक्ष्य बांधवू ते ), सर्वोत्तम सत्यभाषित्व, ( सर्वोत्तम ) छकायर्नु हित, छूपाव्या विना ( सर्वोत्तम ) बल-वीर्य-पुरुषार्थ अने पराक्रमनुं परितोलन, स्वाध्याय अने ध्यानरूपी पाणीथी पापकर्मरूपी मेलना लेपनुं सर्वोत्तम प्रक्षालन-आ दश वस्तुओ प्राप्त थाय छे।" xx 20 "माटे हे गौतम ! एकांतिक, आत्यंतिक, परम शाश्वत, ध्रुव, निरंतर एवा सर्वोत्तम (मोक्ष) सुखना आकांक्षीए सौथी प्रथम आदरपूर्वक सामायिकथी मांडीने लोकबिंदु (चौदमुं पर्व) सुधीना बार अंग प्रमाणना श्रुतज्ञान- काळ लक्ष्यमा राखीने तथा आयंबिल वगेरे विधिपूर्वक उपधानथी; हिंसा वगेरेनो त्रिविधे त्रिविधे त्याग करीने; स्वर-व्यंजन-मात्रा-बिंदु-पद तथा अक्षर जरापण न्यून न आवे एवी रीते; पदच्छेद, घोषबद्धता, आनुपूर्वी, पूर्वानुपूर्वी तथा 25 1. परमपवित्तु / / 2. ठाणेक / / 3. कारवणा B / 4. तओ खं° B / 5. ठाणेक° B / 6. °कारवणा P / 7. सबब्झंतर° / 8. सत्तसंग / 9. सव्वज्झ / 10. सच्चगिरणं P / 11. सासय धु। 12. माइलोगबिंदुसारप P / 13. जहुत्तं विहिणोवहाणाणं B / 14. हिंसादीयं P / 15. हेण प° / 16. मत्तबिंदु A / 17. पुव्वि पु / * "खंती मुत्ती अजव, मद्दव तह लाघवे तवे चेव / संजम चाओऽकिंचन, बोद्धव्वे बंभचेरे य // " अर्थः-"क्षमा, मुक्ति, आर्जव, मार्दव, लाघव, तप, संयम, त्याग, अकिंचन्य अने ब्रह्मचर्य ए दशविध यतिधर्म जाणवो।"
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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