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________________ 51. चउसरणपयनासंदभो। केवलिणो परमोही विउलमई सुअहरा जिणमयंमि / आयरिअ उवज्ज्ञाया ते सव्वे साहुणो सरणं // 32 // 24 // चउदसदसनवपुवी दुवालसिकारसंगिणो जे अ। जिणकप्पअहालंदिअ परिहारविसुद्धिसाहू अ // 33 // 25 // खीरासवमहुआसवसंमिन्नस्सोअकुट्टबुद्धी / चारणवेउविपयाणुसारिणो साहुणो सरणं // 34 // 26 // उज्झियवइरविरोहा निच्चमदोहा पसंतमुहसोहा / अभिमयगुणसंदोहा हयमोहा साहुणो सरणं // 35 // 27 // खंडिअसिणेहदामा अकामधामा निकामसुहकामा / सुपुरिसमणाभिरामा आयारामा मुणी सरणं // 36 // 28 // मिल्हिअविसयकसाया उज्झियघरघरणिसंगसुहसाया / अकलिअहरिसविसाया साहू सरणं गयपमाया // 37 // 29 // हिंसाइदोससुन्ना कयकारूण्णा सयंभुरुप्पण्णा। अजरामरपहखुण्णा साहू सरणं सुकयपुण्णा // 38 // 30 // 15 केवलज्ञानसंपन्न, परमावधिज्ञानसंपन्न, विपुलमति मनःपर्यवज्ञानना धारक, तेमज जिनमार्गमां रहेला आचार्यो, उपाध्यायो वगेरे अत्यंत प्रसिद्ध एवा सर्व साधु भगवंतो मने शरण हो॥३२॥२४॥ वळी चौदपूर्वधरो, दशपूर्वधरो, नवपूर्वधरो, बार अंगना धारक, अगियार अंगना धारक, जिनकल्पिको तथा यथालन्दिक अने परिहारविशुद्धि संयमवाळा सर्व निर्ग्रन्थ साधुभगवंतो मने शरण हो // 33 // 25 // 20 तथा क्षीराश्रवलब्धिसंपन्न, मध्वाश्रवलब्धिसंपन्न, संभिन्नश्रोतोलब्धिसंपन्न, कोष्टबुद्धिसंपन्न, चारणलब्धिसंपन्न, वैक्रियलब्धिसंपन्न अने पदानुसारी लब्धिवाळा सर्व साधु भगवंतो मने शरण हो // 34 // 26 // ___ वैर विरोधथी रहित, सदा द्रोहविनाना सर्वदा प्रसन्नतापूर्ण मुखथी शोभता, ज्ञानादि प्रशस्त ___ गुणोना समूहने धारण करनारा अने मोहने हणनारा श्री साधु भगवंतोतुं शरण हो // 35 // 27 / / 25 जेमणे स्नेहनां बंधन छेदी नांख्यां छे, जेओ विषयासक्ति अने घरवासथी रहित छे (अथवा जेओ कामना हेतु एवा रम्य मंदिरोथी रहित छे अथवा जेओ कामना धाम-स्थान नथी अथवा जेओ अकाम-विकार राहित्यना धाम छे ), मोक्षसंबंधी सुखनी अभिलाषा राखनारा, सत्पुरुषोना मनने आनन्द आपनारा अने आत्मामा रमण करनारा श्रीसाधु भगवंतो मने शरण हो // 36 // 28 // ___पांचेय इन्द्रियोना विषयोने तेमज चार प्रकारना कषायोने दूर करनारा, घर तथा स्त्रीना 50 संगथी थता सुखास्वादने तजनारा, हर्ष के शोक आदिथी रहित अने अप्रमत्त एवा श्री साधु भगवतो मने शरण हो // 37 // 29 // __हिंसादि दोषोथी रहित जीवलोक प्रत्ये करुणाई चित्तवाळा स्वयंभूरमण समुद्र जेवी विशाळ रुचि (सम्यग्दर्शन ) अने प्रज्ञावाळा, अजरामर पथ मोक्षने बतावनारा, शास्त्रोमां निपुण अने-सुंदर रीते कयुं छे पुण्य जेमणे एवा श्री साधु भगवंतो मने शरण हो // 38 // 30 //
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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