________________ [45) चउसरणपयन्नासंदब्भो अमरिंदनरिंदमुणिंदवंदिरं वंदिउं महावीर कुसलाणुबंधि बंधुरमज्झयणं कित्तइस्सामि // 9 // 1 // चउसरणगमण दुक्कडगरिहा सुकडाणुमोअणा येव / एस गणो अणवरयं कायव्वो कुसलहेउत्ति // 10 // 2 // अरिहंत सिद्ध साहू केवलिकहिओ सुहावहो धम्मो। एए चउरो चउगइहरणा सरणं लहइ धनो // 11 // 3 // अह सो जिणभत्तिभरुत्थरंतरोमंचकंचुअकरालो। पहरिसपणउम्मीसं सीसंमि कयंजली भणइ // 12 // 4 // मंगलस्मरण अने उपोद्घात सुर अने असुरना इन्द्रो, मानवोना इन्द्र-चक्रवताओ, तेमज साधुजनोमां सर्वश्रेष्ठ श्रुतकेवलीओ वगेरे सघळाए जे परमात्माना चरणकमळमां भक्तिपूर्वक सदा नमन करे छे ते देवाधि देव श्री महावीर परमात्माने नमस्कार करीने कुशलना कारणभूत अने ए ज कारणे सुंदर एवा आ 15 अध्ययनने हुं कहीश // 9 // 1 // आ अध्ययनमा त्रण वस्तुओ कहेवानी छे / ते आ प्रमाणे छे: विधिपूर्वक श्री अरिहंत परमात्मा आदि चार शरणांनो स्वीकार, पूर्वकृत दुष्कर्मनी शल्यरहितपणे निन्दा, अने स्व तेमज परना सुकृतनी शुभभावनापूर्वक अनुमोदना; आ त्रणेय अधिकारो कुशलना कारणरूप छे / माटे ज ते सदाकाल करवा योग्य छ / धर्मनो प्रारंभ आ त्रण मौलिक 20गुणोथी थाय छे // 10 // 2 // श्री अरिहंत भगवंतो, श्री सिद्धभगवंतो, श्री निर्ग्रन्थ साधुपुरुषो अने सुखने आफ्नार श्री जिनकथित धर्म आ चारेय शरणस्थानो-शरणांओ; देव, नरक, तिर्यंच अने मनुष्यगतिनां दुःखोने दूर करनार छ / धन्यवान पुरुष ज आ शरणांओने पामी शके छे // 11 // 3 // .... श्री अरिहंत भगवंतोनुं शरण28 श्री जिनेश्वरभगवंतोनी भक्तिना समूहथी उल्लासना योगे विकखर बनेली रोमराजीथी उन्नत शोभतो ते भाग्यवान आत्मा अतिहर्षपूर्वक मस्तक पर अंजलि करीने श्री अरिहंत भगवंतोना शरणना स्वीकार माटे आ मुजब कहे छे // 12 // 4 //