________________ विभाग). नमस्कार स्वाध्याय / 507 रागहोसारीणं हंता कम्मढगाइअरिहंता / विसयकसायारीणं अरिहंता हुतुं मे सरणं // 13 // / रायसिरिमवकसित्ता तवचरणं दुचरं अणुचरित्ता / केवलसिरिमरिहंता अरहंता इंतु मे सरणं // 14 // 6 // थुइवंदणमरिहंता अमरिंदनरिंदपूअमरहता।" सासयसुहमरहंता अरहंता हुंतु मे सरणं // 15 // 7 // परमणगयं मुणंता जोइंदमहिंदझाणमरिहंता / धम्मकहं अरहंता अरहंता हुंतु मे सरणं // 16 // 8 // सव्वजिआणमहिंसं अरहंता सच्चवयणमरहंता / बंभव्वयमरहंता अरहंता हुतु मे सरणं // 17 // 9 // ओसरणमवसरित्ता चउतीसं अइसए निसेवित्ता। धम्मकहं च कहता अरहंता हुंतु मे सरणं // 18 // 10 // एगाइ गिराऽणेगे संदेहे देहिणं समं छित्ता / तिहुयणमणुसासंता अरिहंता इंतु मे सरणं // 19 // 11 // सर्व दुःखोना मूल कारण राग अने द्वेषरूप शत्रुओनो नाश करनारा, आठ कर्मो वगैरेनो 15 नाश करनारा, अने विषयकषायोने हणनारा-जीती लेनारा श्री अरिहंत भगवंतो मने शरण हो // 13 // 5 // ..सर्व प्रकारनी राज्यलक्ष्मीनो त्याग करीने अने सामान्य साधुओथी दुश्चर एवा तपने तपीने जेओ केवलज्ञानरूपी लक्ष्मीने योग्य बन्या, ते श्री अरिहंत देवो मने शरण हो // 14 // 6 // त्रणे जगतना लोकोनी स्तुति तेमज वंदनाने योग्य; वळी इन्द्रो, चक्रवर्तीओ, वगेरेनी पूजाने योग्य, अने शाश्वतसुख-मोक्ष सुखने योग्य एवा श्री अरिहंतदेवोनुं मने सर्वदा शरण हो // 15 // 7 // 20 * केवळज्ञानना योगे अन्य सर्वजीवोना मनमा रहेला सर्व भावोने जाणनारा, तेमज योगी ओना इन्द्रो (श्री गणधरदेवादि ) अने देवेन्द्रो वगेरेना परम ध्येय अने परम कल्याणने करनारी धर्मकथाना उपदेश माटे परम योग्य ऎवा श्री अरिहंत देवो मने शरण हो // 16 // 8 // सर्वजीवोनी पारमार्थिक दया-अहिंसाना पालन माटे परम योग्य, सत्यवचन माटे परम योग्य, तेमज ब्रह्मव्रतना पालन वगेरे माटे सर्वथा योग्य छे एवा त्रिलोकनाथ श्री अरिहंतदेवो मने 25 शरण हो // 17 // 9 // - देवोना समुदाये भक्तिथी रचेला समवसरणमां विराजमान थईने अने चोत्रीश अतिशयोने वीतरागभावे सेवीने पांत्रीश गुणयुक्त मनोहर वाणीथी धर्मकथाने कहेनारा श्री अरिहंत देवो मने शरण हो // 18 // 10 // एक ज वचनथी, एकज काळे, देवो, मनुष्यो अने तिर्यंचोना अनेक प्रकारना संशयोने छेदीने 30 त्रणेय लोकपर अनुशासन करता श्री अरिहंत देवोनुं मने निरंतर शरण हो // 19 // 11 // 1. राग त्रण प्रकारनो छेः कामराग, स्नेहराग अने दृष्टिराग / अथवा, आसक्ति ते राग छ / परद्रोहनो अध्यवसाय ते द्वेष छे / अथवा, अप्रीति ते द्वेष छ। 2. 'वगेरे' पदथी परीषह, वेदना, उपसर्ग वगेरे लेवान छ। 3 वाणी पांत्रीश गुणोथी युक्त होवाना कारणे।