________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। 505 मुत्तुंपि बारसंग, स एव मरणंमि कीरए जम्हा / अरिहंत-नमुक्कारो तम्हा सो बारसंगत्थो // 14 // तप्पणईणं तम्हा, अणुसरियव्यो सुहेण चित्तेण / एसो व नमुक्कारो, कयन्नुयं मन्नमाणेणं // 15 // नवकारओ अन्नो, सारो मंतो न अत्थि तियलोए / तम्हा हु अणुदिणं चिय, पढियव्वो परम-भत्तीए // 16 // उरगाईण वि मंत्ता, अविहीए उ अहिजिया / विसंजओ न नासंति, तम्हा उ विहिणा पढे // 17 // इह लोगंमि तिदंडी, सादिव्वं माउलिंग-वणमेव / परलोए चंडपिंगल-हुडियजक्खो य दिटुंता // 18 // (श्राद्धदिनकृत्य पृ. 10) प्रहण करवामां आवे छे तेम मृत्यु उपस्थित थाय त्यारे द्वादशांगीतुं स्मरण न करतां अरिहंत आदि पंचपरमेष्ठीना नमस्कार ज स्मरण करवामां आवे छे तेथी नमस्कारमंत्र ए द्वादशांगीतुं रहस्य छे // 13-14 // ____ माटे तेना प्रकाशक अरिहंत आदिना नमस्कारमंत्रनुं पोताने कृतज्ञ माननार श्रावके शुभ-15 चित्तथी स्मरण-ध्यान करवू जोईए // 15 // त्रण जगतमां नवकारथी सारो बीजो कोई मंत्र नथी, माटे प्रतिदिवस परमभक्तिथी नमस्कारमंत्रनुं पठन कर जोईए // 16 // सर्प आदिना पण मंत्रो अविधिपूर्वक जपवामां आवे तो विषनो नाश करी शकता नथी, माटे नमस्कारमंत्रनुं विधिपूर्वक स्मरण कर जोईए // 17 // 20 नमस्कारमंत्रना स्मरणथी आ लोकमां प्राप्त थता फळ विषे 'त्रिदंडी, सादिव्य तथा मातुलिंगवननां दृष्टांत छे, अने परलोकमां प्राप्त थता फळ विषे चंडपिंगल तथा इंडिक यक्षनां दृष्टांतो छ // 18 // - -- 1 आ दृष्टांतोनुं वर्णन पृ. 160 थी 163 मां आवी गयु छे तेथी त्या जोई लेवु। ......