________________ ४९२श्रीमद्रनशेखरसूरिरचित सिरिसिरिवालकहा'न्तर्गतपञ्चपरमेष्ठिनः पञ्चनवकात्मकः।[प्राकृत छजीवकायरक्खणनिउणा हासाइछक्कमुक्का जे / धारंति अ वयछकं ते सव्वे साहुणो वंदे // 1259 // व्याख्या-षड् जीवकायानां पृथिव्यादीनां रक्षणे निपुणाः- दक्षाः, च-पुनः हास्यादिषट्काद् मुक्ताः-रहिताः सन्तो ये व्रतषट्कं -प्राणातिपातविरमणादिरात्रिभोजनपर्यन्तं धारयन्ति, तानित्यादि 5 प्राग्वत् // 1259 // जे जियसत्तभया गयअट्ठमया नवावि बंभगुत्तीओ। पालंति अप्पमत्ता ते सव्वे साहुणो वंदे // 1260 // व्याख्या-जितानि इहलोकभयादीनि सप्तभयानि यैस्ते तथा, गता अष्टौ मदाः जातिमदादयो येभ्यस्ते गताष्टमदाः, पुनः अप्रमत्ताः-प्रमादरहिताः सन्तो ये नवापि ब्रह्मगुप्तीः पालयन्ति, तान् सर्वान् 10 साधून् वन्दे // 1260 // दसविहधम्म तह बारसेव पडिमाओं जे अ कुव्वंति / बारसविहं तवोवि अ ते सव्वे साहुणो वंदे // 1261 // व्याख्या-च-पुनः ये दशविधं-दशप्रकारं धर्म - क्षान्त्यादिकं तथा द्वादशैव प्रतिमाःसाधुसम्बन्धिनीः कुर्वन्ति-धारयन्ति, च-पुनः द्वादशविधं तपोऽपि अनशनादिकं कुर्वन्ति, तान् सर्वान् 15 साधूनहं वन्दे // 1261 // जे सतरसंजमंगा, उव्बूढाट्ठारसहससीलंगा। विहरंति कम्मभूमिसु ते सव्वे साहुणो वंदे / / 1262 // व्याख्या-सप्तदशभेदः - संयमः अङ्गे- शरीरे येषां ते तथा, पुनरुद्वयूढानि-उत्कर्षेण धृतानि अष्टादशसहस्रशीलाङ्गानि यैस्ते तथा, एवम्भूताः सन्तो ये कर्मभूमिषु पञ्चदशसु विहरन्ति - विचरन्ति, 20 तान् साधून् अहं वन्दे // 1262 // जेओ छ प्रकारना जीवनिकायो (पृथ्वी, अप, तेज, वायु, वनस्पति अने त्रस ) नुं रक्षण करवामां कुशळ छे, हास्यादिक षटूथी ( हास्य, रति, अरति, शोक, भय अने जुगुप्सा) जेओ मुक्त छे अने जेओ छ व्रतोने (प्राणातिपातविरमण, मृषावादविरमण, अदत्तादानविरमण, मैथुनविरमण, परिग्रहविरमण अने रात्रिभोजनविरमण ) प्राणनी पेठे धारण करे छे ते सर्व साधुजनोने 25 हुं वंदन करुं छु // 1259 // जेमणे इहलोकभय वगेरे सात भयोने जीती लीधा छे, जेमनामांथी आठ प्रकारना (जाति वगेरे ) मदो चाल्या गया छे अने जेओ नव प्रकारनी ब्रह्मचर्यनी गुप्तिओनुं प्रमाद विना पालन करे छे ते बधा साधु महाराजोने हुं वंदन करूं छु // 1260 // ___ जेओ दश प्रकारनो यतिधर्म, बार प्रकारनी साधु संबंधी प्रतिमाओ अने बार प्रकारनां 30 तपनुं आराधन करे छे ते सर्व साधु महाराजोने हुं वंदन करूं // 1261 // सत्तर प्रकारना संयमने पाळता अने अढार हजार शीलांगने धारण करता जेओ कर्मभूमिमां विचरे छे ते सर्व साधु महाराजोने हुं वंदन करूं छु // 1262 //