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________________ [40] उपदेशमाला संदब्भो (गाहा) उकोसो सज्झाओ, चउदस-पुव्वीण बारसंगाई / तत्तो परिहाणीए, जाव तयथ्थो नमोकारो // 1 // जलणाइ-भए सेसं, मोत्तुं इक्कपि जह महारयणं / घिप्पइ संगामे वा, अमोह-सत्थं जह तहेह // 2 // मोत्तुंपि बारसंगं, स एव मरणंमि कीरए जम्हा / अरहंत नमोकारो, तम्हा सो बारसंगत्यो // 3 // सव्वंपि बारसंगं, परिणाम-विशुद्धि-हेउ-मित्तागं / तक्कारण-मित्ताओ, किह न तयथ्यो नमोकारो // 4 // न हु तंमि देसकाले सको बारसविहो सुयक्खंधो। सव्वो अणुचिंतेडे, धंतपि समत्थ-चित्तेणं // 5 // __15 चौद पूर्वधरोने उत्कृष्ट स्वाध्याय बार अंगोनो होय छे। त्यारपछी अनुक्रमे घटतां घटतां छेवटे द्वादशांगीनो सार जे नमस्कार महामंत्र तेनो स्वाध्याय होय छे // 1 // . (कारणके ) अग्नि आदिनो भय आवी पडे त्यारे बीजी तमाम वस्तुओने पडती मूकीने जेम . एक महारत्नने ग्रहण करवामां आवे छे तथा जेम संग्रामनी अंदर बीजां शस्त्रोने छोडी दइने एक जे अमोघ शस्त्र होय ते ग्रहण करवामां आवे छे तेम अहीं पण मरण उपस्थित थाय त्यारे (ए अवस्थामां द्वादशांगीतुं स्मरण अशक्य होवाने लीधे) द्वादशांगीने छोडीने नमस्कारमंत्रनुं ज स्मरण करवामां आवे छे। तेथी अरिहंत (आदि पंचपरमेष्ठीओ )ने करेलो नमस्कार ए द्वादशांगीनो सार छे // 2-3 // 20 कारणके आखी ये द्वादशांगी परिणामनी विशुद्धिने माटे ज छे अने नवकार पण परिणामनी विशुद्धिनुं कारणमात्र छ / एटले नमस्कारमंत्रने द्वादशांगीनो सार केम न कही शकाय ? ( अर्थात् द्वादशांगीतुं जे कार्य परिणामविशुद्धि ते नमस्कारमंत्रथी पण थतुं होवाने लीधे नमस्कारमंत्र ए द्वादशांगीनो सार छे एम अवश्य कही शकाय) // 4 // कारणके मरण आदि आवी पडे त्यारे अत्यंत समर्थ चित्तवाळा (चौद पूर्वधरो) पण ते 25 देश-काळमां (ते अवस्थामां) समग्र द्वादशांगीतुं अनुचिंतन करी शकता नथी / (परममंगलभूत पंचपरमेष्ठिनमस्कारमंत्रनुं ज मात्र ते अवस्थामां स्मरण करी शकाय छे / माटे नमस्कारमंत्र ए द्वादशांगीनो सार छे) // 5 //
SR No.004340
Book TitleNamaskar Swadhyay Prakrit Vibhag
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDhurandharvijay, Jambuvijay, Tattvanandvijay
PublisherJain Sahitya Vardhak Sabha
Publication Year1961
Total Pages592
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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