________________ 10 विभाग] नमस्कार स्वाध्याय।। गयदुविहदुटुझाणा जे झाइअधम्म सुक्झाणा य / सिक्खंति दुविहसिक्खं ते सव्वे साहुणो वंदे // 1255 // व्याख्या-गते द्विविधे-द्विप्रकारे दुष्टध्याने - आर्त-रौद्राख्ये येभ्यस्ते गतद्विविधदुष्टध्यानाः, च - पुनः ध्याते धर्म-शुक्ल ध्याने यैस्ते तथाभूताः सन्तो ये द्विविधशिक्षा - ग्रहणा-सेवनारूपां शिक्षन्ते, तान् सर्वान् साधून् वन्दे // 1255 // गुत्तित्तएण गुत्ता तिसल्लरहिया तिगारवविमुक्का / जे पालयंति तिपइं ते सव्वे साहुणो वंदे // 1256 // व्याख्या-गुप्तित्रयेण-मनोवाक्कायगुप्तिलक्षणेन गुप्ताः-गुप्तिमन्तः पुनस्त्रिभिः शल्यैःमायाशल्यादिभिः रहिता - वर्जितास्तथा त्रिभिर्गारवैः- ऋद्धिगारवादिभिर्विमुक्ताः सन्तो ये त्रिपदींज्ञान-दर्शन-चारित्ररूपां पालयन्ति, तान् सर्वान् साधूनहं वन्दे // 1256 // चउविहविगहविरत्ता जे चउविहचउकसायपरिचत्ता / चउहा दिसंति धम्मं ते सव्वे साहुणो वंदे // 1257 // व्याख्या- चतुर्विधाभ्यः - चतुष्प्रकाराभ्यः विकथाभ्यो - राजकथादिभ्यो विरक्ताः, पुनः चतुर्विधा - अनन्तानुबन्ध्यादिभेदाच्चतुष्प्रकारा ये चत्वारः कषायाः- क्रोधादयस्ते परित्यक्ता यैस्ते तथा, ईदृशाः सन्तो ये दानादिभेदाच्चतुर्की- चतुर्भिः प्रकारैर्धम दिशन्ति -प्ररूपयन्ति, तान् सर्वान् साधूनहं 15 वन्दे // 1257 // उझिअपंचपमाया निजिअपंचिंदिया य पालेंति / पंचेव [य] समिईओ ते सव्वे साहुणो वंदे // 1258 // व्याख्या- उज्झिताः - त्यक्ताः पञ्च प्रमादा- मद्यादयो यैस्ते तथा, च पुनः निर्जितानि पञ्चेन्द्रियाणि यैस्ते निर्जितपञ्चेन्द्रियाः सन्तः पञ्चैव समितीःपालयन्ति तान् सर्वान् साधून वन्दे,च पादपूरणे॥१२५८॥ 20 जेमने बे प्रकारनां ( आर्त्त अने रौद्र) दुष्ट ध्यानो नष्ट थयां छे अने जेओ धर्मध्यान तेमज शुक्लध्याननुं ध्यान धरे छे तेमज बे प्रकारनी शिक्षा एटले *ग्रहणशिक्षा तथा आसेवना शिक्षाओने जेओ शीखे छे ते सर्व साधुओने हुं वंदन करूं छु // 1255 // - जेओ त्रण (मन, वचन अने कायानी) गुप्तिओथी रक्षायेल छे, त्रण ( माया, निदान अने मिथ्यात्व ) शल्योथी रहित छ, त्रण (ऋद्धि, रस अने शाता) गारवोथी मुक्त छे अने जेओ त्रिपदी 25 (एटले ज्ञान, दर्शन अने चारित्र)नुं पालन करे छे ते बधा साधु महाराजोने हुं वंदन करुं छं।।१२५६॥ __ जेओ चार प्रकारनी विकथाथी (स्त्रीकथा, भोजनकथा, देशकथा अने राजकथा) विरक्त छे, चार प्रकारना कषायना (क्रोध, मान, माया अने लोभ ) त्यागी छे, अने चार प्रकारनो उपदेश (दान, शीयळ, तप अने भावना) करे छे ते बधा साधु महाराजोने हुं वंदन करूं छं // 1257 // ___ पांच प्रमादना (मद्य, विषय, कषाय, निद्रा अने विकथा) परिहारी, अने पांच इंद्रियो 30 (स्पर्शन, रसन, घ्राण, नयन अने श्रवण) ना विजेता एवा जेओ पांच समितिओनुं (ईर्यासमिति, भाषासमिति, एषणासमिति, आदानभंडमत्तनिक्षेपनासमिति अने परिष्ठापनिकासमिति ) पालन करे छे ते बधा साधु महाजोने हुं वंदन करुं हुं / 1258 // *ग्रहणशिक्षा एटले शास्त्रोनुं ज्ञान मेळवQ अने आसेवनाशिक्षा एटले पालन करतुं /