________________ विभाग] नमस्कार स्वाध्याय। जे निश्चमप्पमत्ता विगहविरचा कसायपरिचचा। धम्मोवएससचा ते आयरिए नमसामि // 1238 // ... व्याख्या-ये नित्यम् अप्रमत्ताः-प्रमादरहिताः, पुनः विकथा - राजकथादिकास्ताभ्यो विरक्ताः, पुनः परित्यकाः कषायाः-क्रोधादयो यैस्ते तथा, पुनर्धर्मोपदेशे सक्ताः-लमाः यद्धा शताःसमस्तानाचार्यान् नमस्यामि // 1238 // जे सारणवारणचोयणाहिँ पडिचोयणाहिँ निचंपि / सारंति नियं गच्छं ते आयरिए नमसामि // 1239 // व्याख्या-ये आचार्याः स्मारणा-वारणा-चोदनादिभिः पुनः प्रतिचोदनादिभिनित्यमपि निजं गच्छं सारयन्ति, तत्र विस्मृतस्य स्मारणं स्मारणा अशुद्धं पठतो वारणं वारणा, अध्ययनाद्यर्थ प्रेरणं चोदना, कठोरवचनैः प्रेरणं प्रतिचोदना, इत्थं मारणादिभिर्ये स्वगच्छस्य रक्षणं कुर्वन्ति तानाचार्यान् 10 नमस्यामि // 1239 // जे मुणियसुत्तसारा, परोवयारिकतप्परा दिति / तत्तोवएसदाणं ते आयरिए नमंसामि // 1240 // व्याख्या- मुणितो- ज्ञातः सूत्राणां सारो यैस्ते तथा, अत एव परोपकारे एवैकस्मिन् तत्पराः सन्तो ये तत्त्वोपदेशदानं ददति, तानाचार्यान् नमस्यामि // 1240 // अत्थमिए जिमसूरे केवलिचंदेवि जे पईवु व्व। -: पयर्डति इह पयत्थे ते आयरिए नमसामि // 1241 // व्याख्या-जिनः- अर्हन्नेव सूरः- सूर्यस्तस्मिन् 'अस्तमिते' अस्तं गते सति पुनः केवलीसामान्यकेवली स एव चन्द्रस्तस्मिन्नपि अस्तमिते सति प्रदीप इव ये इह - लोके पदार्थान् प्रकटयन्तिप्रकटीकुर्वन्ति, तानाचार्यान् नमस्यामि // 1241 // ... जेओ हमेशां (पोताना कर्तव्यमां) प्रमादरहित होय छे, विकथाओयी पर्जित रहे छे, कषायोथी दूर रहे छे अने धर्मनो उपदेश आपवामां तत्पर रहे छे ते आचार्य महाराजाने हुं नमस्कार करुं छु॥ 1238 // जे सारणा, (आचारनी वारंवार याद आपे छे ) वारणा, (आचार भूलता होय तो रोके छे), चोयणा ( आचार माटे प्रेरणा करीने तेमा जोडे छे ) अने पडिचोयणा वडे निरंतर खगच्छनी 25 संभाळ राखे के ते आचार्य महाराजने हुं वंदुं हुं // 1239 // . जेमणे सूत्रोनो सार-रहस्य-जाणी लीधो छे अने तेथी जेओ एक मात्र परोपकारमा ज तत्पर रहीने तत्त्वोना उपदेशनु दान आपे छे ते आचार्य महाराजोने नमस्कार करुं छु // 1240 // . जिनेश्वररूपी सूर्यनो अने सामान्य केवळीरूप चंद्रनो अस्त थया पछी आ मनुष्यक्षेत्रमा दीपकनी पेठे जेओ तत्त्वनो प्रकाश करे छे ते आचार्य भगवंतोने हुं नमस्कार करूं छु // 124.1 / / 30 20