________________ ४८४श्रीमद्रनशेखरसूरिरचित 'सिरिसिरिवालकहान्तर्गतपञ्चपरमेष्ठिनः पञ्चनवकात्मकः। [प्राकृत पणतीसगुणगिराए जे अविवोहं कुणंति भव्वाणं / / .... महिपीढे विहरंता ते अरिहंते पणिवयामि // 1226 // व्याख्या-पञ्चत्रिंशद्गुणाः यस्यां सा पञ्चत्रिंशद्गुणा या गीः-वाणी तया, ये च भव्यानां विबोधंविशिष्टज्ञानं कुर्वन्ति, कीदृशाः सन्तः ? महीपीठे-पृथ्वीपीठे विचरन्तस्तानर्हतः प्रणिपतामि // 1226 // अरहता वा सामनकेवला अकयकय समुग्धाया / सेलेसीकरणेणं होऊणमयोगिकवलिणो // 1227 // व्याख्या- अर्हन्तः तीर्थक्करा वा-अथवा सामान्यकेवलिनः, अकृतः कृतो वा समुद्घातःकेवलिसमुद्घातो यैस्ते तथा एवम्भूता ये योगीन्द्राः शैलेशीकरणेन -आत्मप्रदेशस्थिरीकरणरूपेण अयोगिकेवलिनो भूत्वा // 1227 // जे दुचरिमम्मि समए दुसयरिपयडीओं तेरस अ चरमे. खविऊण सिवं पत्ता ते सिद्धा दितु मे सिद्धिं // 1228 // व्याख्या-द्विचरमे-आयुःक्षयसमयात् प्राक्तने समये द्वासप्तति 72 प्रकृती माद्यघातिकोंतर-प्रकृतीः क्षपयित्वा चः– पुनश्चरमे समये त्रयोदशप्रकृतीः क्षपयित्वा शिवं-मोक्षं प्राप्ताः, ते सिद्धा मे - मह्यं मुक्तिं ददतु // 1228 // . चरमंगतिभागोणावगाहणाजे अ एगसमयम्मि। संपत्ता लोगग्गं ते सिद्धा दितु मे सिद्धिं // 1229 // व्याख्या-चरमा - अन्तिमा, अङ्गस्य - शरीरस्य त्रिभागेन ऊनावगाहना-देहमानं येषां ते तथा, ये च ईदृशाः सन्तः एकस्मिन् समये लोकाग्रं सम्प्राप्तास्ते सिद्धा मे सिद्धिं ददतु // 1229 // पुव्वपओग असंमा बंधणछेया सहावतो वादि / जेसि उड्डा हु गई ते सिद्धा दिंतु मे सिद्धिं // 1230 // व्याख्या- पूर्वप्रयोगतो धनुर्मुक्तबाणवत् , तथाऽसङ्गात् - निःसङ्गतया कर्ममलापगमेन अलाबु पृथ्वीपीठ उपर विचरता जेओ पांत्रीश गुणोथी युक्त एवी वाणी वडे भव्यजनोने प्रतिबोध करे छे ते अरिहंतोने हुं प्रमाण करुं हुं // 1226 // सिद्ध25 केवळी समुद्धात करीने अथवा कर्या सिवाय अरिहंतो के सामान्य केवळीओ शैलेशीकरण वडे अयोगी केवळी थई आयुष्यना छेल्ला बे समयमांना पहेले समये बोत्तर प्रकृतिओने खपावी अने छल्ले समये तेर प्रकृतिओने खपावी जेओ मोक्षमा गया छे ते सिद्ध भगवानो मने मोक्ष आपो॥ 1227-28 // चरम शरीरना वीजा भागे न्यून अवगाहनावाळा जेओ एक ज समयमा लोकना अप्रभागे 30 जई पहोंचे छे ते सिद्ध भगवंतो मने मोक्ष आपो // 1229 // धनुष्यमाथी छूटेला बाणनी पेठे पूर्वप्रयोगथी, तुंबडानी पेठे असंगपणाथी, एरंडाना फळनी