________________ 483 विभाग] ... नमस्कार स्वाध्याय / व्याख्या-हु इति निश्चितं, येषां देहे-शरीरे आजम्मापि जन्मत आरभ्यापि लोके आश्चर्यभूताश्चत्वारोऽतिशया भवन्ति, 'तेषां च देहोऽद्भुतरूपगन्धः' इत्यादयस्तानहतः प्रणिपतामि // 1221 / / जे तिहुनाणसमम्पा खीणं नाऊम भोगफलकम्म। . पविजेति चरितं ते अरिहंते पणिवयामि // 1222 // व्याख्या-ये त्रिभिमा॑नः- मतिश्रुतावधिभिः समग्राः - सम्पूर्णाः सन्तो भोगः फलं यस्य / तद्भोगफलं कर्म क्षीणं ज्ञात्वा चारित्रं प्रतिपद्यन्ते- अङ्गीकुर्वन्ति तानहतः प्रणिपतामि // 1222 // उवउत्ता अपमत्ता सिअझाणा खवगसेणि हयमोहा / पावंति केवलं जे ते अरिहंते पणिवयामि // 1223 // व्याख्या-ये उपयुक्ता - उपयोगयुताः पुनरप्रमत्ताः- प्रमादरहिताः पुनः सितं-शुलं ध्यानं येषां ते सितध्यानाः अत एव क्षपकश्रेण्या हतो मोहो यैस्ते तथा, ईदृशाः सन्तः केवलज्ञानं प्रामुवन्ति, 10 तानर्हतः प्रणिफ्तामि // 1223 // कम्मक्खइया तह सुरकया य जेसिं च अइसया हुंति। ..... एगारसगुणवीसं ते अरिहंते पणिक्यामि // 1224 // .. - व्याख्या-च-पुनः, येषां कर्मक्षयजा:-कर्मक्षयोत्पन्ना एकादश अतिशया भवन्ति, तथा सुरैः-देवैः कृताश्च एकोनविंशतिरतिशया भवन्ति, तानर्हतः प्रणिपतामि // 1224 // ... 15 जे अट्ठपाडिहारेहिं सोहिआ सेविया सुरिंदेहिं / / विहरंति सया कालं ते अरिहंते पणिवयामि // 1225 // व्याख्या-ये 'अष्टप्रातिहार्यैः' अशोकवृक्षादिभिः शोभिताः, पुनः सुरेन्द्रैः सेविताः सदाकालं विचरन्ति, तानर्हतः प्रणिपतामि // 1225 // . जन्मथी मांडीने जेमना देहमां जगतमां आश्चर्यभूत एवा चार अतिशयों* होय छे ते 20 अरिहतोने हुं प्रणमुं छु // 1221 // त्रण ज्ञानथी परिपूर्ण एवा जे भगवंतो भोगावळीकर्मने क्षीण थयेलं जाणीने चारित्ररूप निवृत्तिमार्गने आदरे छे ते अरिहंतोने हुं प्रणाम करूं छु // 1222 // चारित्रधर्ममां सदा उपयोगी, अप्रमत्त, शुक्लध्यानवाळा तथा क्षपकणि उपर आरूढ थई मोहने हणी जे केवळज्ञानने प्राप्त करे छे ते अरिहंतोने हुं प्रणाम करूं छु // 1223 // 25 ___ कर्मना क्षयथी उत्पन्न थयेला अगियार अतिशयो तथा देवोए करेला ओगणीस अतिशयो जेमने होय छे ते अरिहंतोने हुं प्रणाम करुं हुं // 1224 // . आठ प्रातिहार्यो वडे शोभता तथा सुरनायको वडे सेवाता एवा जे सदाकाळ विचरे छे ते अरिहंतोने.हं नमस्कार करुं छं॥ 1225 // * चार अतिशयोः१. चर्मचक्षुथी जोई न शकाय ए रीते अरिहंत भगवंतो आहार अने निहार करे छ। 2. तेओनुं शरीर परसेवो, मेल, रोगथी रहित अने सुंदर होय छ / 3. तेओ गायना दूधनी धारा जेवा श्वेत मांस अने रुधिरने धारण करे छ / - 4. तेओना श्वास भने उस्कास मंदार अने पारिजातनां पुष्पोथी उत्पन्न यती सुरमि जेवा होय छ। ....... / मास अन रुधिरने धारण करे